महताब Poetry (page 7)
अफ़्सुर्दगी-ए-दर्द-ए-फ़राक़त है सहर तक
अज़हर नक़वी
हर एक रात को महताब देखने के लिए
अज़हर इनायती
हर एक रात को महताब देखने के लिए
अज़हर इनायती
ये कम नहीं के वही शाम का सितारा है
अज़हर हाश्मी
अटूट अंग
अज़हर गौरी
कल परदेस में याद आएगी ध्यान में रख
अज़हर अदीब
दर-ओ-दीवार से डर लग रहा था
अज़हर अदीब
वो शोख़ दिल-ओ-जाँ की तमन्ना तो न निकला
अज़ीम कुरेशी
मैं अपने आप से इक खेल करने वाला हूँ
आज़ाद गुलाटी
हवस ने मुझ से पूछा था तुम्हारा क्या इरादा है
औरंगज़ेब
आसमाँ का सितारा न महताब है
अतीक़ुल्लाह
कहाँ गए शब-ए-महताब के जमाल-ज़दा
अताउर्रहमान जमील
ज़िंदगी आईना है आईना-आराई है
अता शाद
दिलों के दर्द जगा ख़्वाहिशों के ख़्वाब सजा
अता शाद
नुमाइश में
असरार-उल-हक़ मजाज़
मादाम
असरार-उल-हक़ मजाज़
इशरत-ए-तन्हाई
असरार-उल-हक़ मजाज़
ए'तिराफ़
असरार-उल-हक़ मजाज़
ठहरे तो कहाँ ठहरे आख़िर मिरी बीनाई
असरारुल हक़ असरार
कर्गस को सुरख़ाब बनाना चाहोगे
असरा रिज़वी
जगमगाती ख़्वाहिशों का नूर फैला रात भर
असलम आज़ाद
दर्स-ए-आदाब-ए-जुनूँ याद दिलाने वाले
असलम अंसारी
ये मिरी बज़्म नहीं है लेकिन
आसिफ़ रज़ा
हम दश्त से हर शाम यही सोच के घर आए
असग़र गोरखपुरी
रक़्स-ए-मस्ती देखते जोश-ए-तमन्ना देखते
असग़र गोंडवी
मोहब्बत सिर्फ़ इक जज़्बा नहीं है
अरशद लतीफ़
मेहर ओ महताब को मेरे ही निशाँ जानती है
अरशद अब्दुल हमीद
दिल यही सोच के बेताब हुआ जाता है
अनुभव गुप्ता
चला हवस के जहानों की सैर करता हुआ
अंजुम सलीमी
चाँद हम दोनों से मुशाबह है
अंजुम ख़लीक़
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