धर्म Poetry
हम्द
मुबश्शिर अली ज़ैदी
मुसलमान और हिन्दोस्तान
हिन्दी गोरखपुरी
हिजरत
नादिया अंबर लोधी
मस्जिद-ओ-मंदिर का यूँ झगड़ा मिटाना चाहिए
अख़्तर आज़ाद
हिदायत
एहतिशाम अख्तर
ज़ेहरा ने बहुत दिन से कुछ भी नहीं लिक्खा है
ज़ेहरा निगाह
यूँ तो किस चीज़ की कमी है
ज़फ़र इक़बाल
मज़हब-ए-इंसानियत
यूसुफ़ राहत
सब तिरे सिवा काफ़िर आख़िर इस का मतलब क्या
यगाना चंगेज़ी
उठा दी क़ैद-ए-मज़हब दिल से हम ने
वज़ीर अली सबा लखनवी
क़ैद-ए-मज़हब वाक़ई इक रोग ही
वज़ीर अली सबा लखनवी
जो अदू-ए-बाग़ हो बरबाद हो
वज़ीर अली सबा लखनवी
अदू-ए-जाँ बुत-ए-बे-बाक निकला
वज़ीर अली सबा लखनवी
दिलों में रहिए जहाँ के वले ख़ुदा के ढब
वली उज़लत
ये शहर अपनी इसी हाव-हू से ज़िंदा है
तालीफ़ हैदर
हर अदा तुंद और नबात उस की
ताबिश सिद्दीक़ी
काबा है अगर शैख़ का मस्जूद-ए-ख़लाइक़
ताबाँ अब्दुल हई
इंक़लाब
सय्यद तसलीम हैदर क़मर
सितम करना करम करना वफ़ा करना जफ़ा करना
सय्यद नज़ीर हसन सख़ा देहलवी
याद के त्यौहार में वस्ल-ओ-वफ़ा सब चाहिए
सय्यद मुनीर
ला-यानियत
सुलैमान अरीब
प्यार का दर्द का मज़हब नहीं होता कोई
सुलैमान अरीब
बादा-ए-इश्क़ से सरशार गुरु-नानक थे
श्याम सुंदर लाल बर्क़
बात हो दैर-ओ-हरम की या वतन की बात हो
शायान क़ुरैशी
ये किस मज़हब में और मशरब में है हिन्दू मुसलमानो
शैख़ ज़हूरूद्दीन हातिम
सुनो हिन्दू मुसलमानो कि फ़ैज़-ए-इश्क़ से 'हातिम'
शैख़ ज़हूरूद्दीन हातिम
मैं कुफ़्र ओ दीं से गुज़र कर हुआ हूँ ला-मज़हब
शैख़ ज़हूरूद्दीन हातिम
किसू मशरब में और मज़हब में
शैख़ ज़हूरूद्दीन हातिम
शैख़ तू तो मुरीद-ए-हस्ती है
शैख़ ज़हूरूद्दीन हातिम
न मोहतसिब से ये मुझ को ग़रज़ न मस्त से काम
शैख़ ज़हूरूद्दीन हातिम
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