दूरी Poetry (page 4)
रवाँ हूँ मैं
इक़बाल कौसर
जिला
इंजिला हमेश
सड़क
इमरान शमशाद
काँटों में ही कुछ ज़र्फ़-ए-समाअत नज़र आए
इमदाद निज़ामी
स्कैप-इज़्म
इलियास बाबर आवान
हिज्र की मसाफ़त में साथ तू रहा हर दम
इकराम मुजीब
और ही कहीं ठहरे और ही कहीं पहुँचे
इकराम मुजीब
अब मसाफ़त में तो आराम नहीं आ सकता
इदरीस बाबर
उलझनें इतनी थीं मंज़र और पस-मंज़र के बीच
हुसैन ताज रिज़वी
मुद्दत के बाद
हिमायत अली शाएर
हरीफ़-ए-विसाल
हिमायत अली शाएर
चाँद ने आज जब इक नाम लिया आख़िर-ए-शब
हिमायत अली शाएर
तल्ख़ियाँ रह जाएँगी लफ़्ज-ए-वफ़ा रह जाएगा
हसन निज़ामी
कू-ए-रुसवाई से उठ कर दार तक तन्हा गया
हसन नईम
उलझी हुई सोचों की गिर्हें खोलते रहना
हसन नासिर
हमेशा इक मसाफ़त घूमती रहती है पाँव में
हसन अब्बास रज़ा
अधूरे मौसमों का ना-तमाम क़िस्सा
हसन अब्बास रज़ा
किसी के हिज्र में यूँ टूट कर रोया नहीं करते
हसन अब्बास रज़ा
अगर मौज है बीच धारे चला चल
हफ़ीज़ जालंधरी
गुलाबों के नशेमन से मिरे महबूब के सर तक
ग़ुलाम मोहम्मद क़ासिर
तड़प उठी है किसी नगर में क़याम करने से रूह मेरी
ग़ुलाम हुसैन साजिद
नहीं है इस नींद के नगर में अभी किसी को दिमाग़ मेरा
ग़ुलाम हुसैन साजिद
मता-ए-दीद तो क्या जानिए किस से इबारत है
ग़ुलाम हुसैन साजिद
ख़ुदा-ए-बर्तर ने आसमाँ को ज़मीन पर मेहरबाँ किया है
ग़ुलाम हुसैन साजिद
अपने अपने लहू की उदासी लिए सारी गलियों से बच्चे पलट आएँगे
ग़ुलाम हुसैन साजिद
बे-चेहरगी-ए-उम्र-ए-ख़जालत भी बहुत है
ग़ज़नफ़र हाशमी
मिलने का भी आख़िर कोई इम्कान बनाते
फ़ाज़िल जमीली
चंद साँसें हैं मिरा रख़्त-ए-सफ़र ही कितना
फ़ज़ा इब्न-ए-फ़ैज़ी
क्यूँ मसाफ़त में न आए याद अपना घर मुझे
फ़ौक़ लुधियानवी
हम तो बस
फर्रुख यार
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