मौसम Poetry (page 21)
पुराने पेड़ को मौसम नई क़बाएँ दे
गुलज़ार वफ़ा चौदरी
धूल न बनना आईनों पर बार न होना
गुलज़ार वफ़ा चौदरी
उस का चेहरा भी चमक में न मिसाली निकला
गुलज़ार बुख़ारी
सीलन
गुलज़ार
सिद्धार्थ की एक रात
गुलज़ार
बर्फ़ पिघलेगी
गुलज़ार
ऐसा ख़ामोश तो मंज़र न फ़ना का होता
गुलज़ार
न कोई दीन होता है न कोई ज़ात होती है
गुलशन बरेलवी
याद नहीं है
गुलनाज़ कौसर
ये तिलिस्म-ए-मौसम-ए-गुल नहीं कि ये मोजज़ा है बहार का
गुलनार आफ़रीन
शजर-ए-उम्मीद भी जल गया वो वफ़ा की शाख़ भी जल गई
गुलनार आफ़रीन
सँभल के रहिएगा ग़ुस्से में चल रही है हवा
गोविन्द गुलशन
है बहुत अँधियार अब सूरज निकलना चाहिए
गोपालदास नीरज
शब-ताब
गोपाल मित्तल
आते ही जवानी के ली हुस्न ने अंगड़ाई
गोपाल कृष्णा शफ़क़
हिज्र के तपते मौसम में भी दिल उन से वाबस्ता है
ग़ुलाम मोहम्मद क़ासिर
हर साल बहार से पहले मैं पानी पर फूल बनाता हूँ
ग़ुलाम मोहम्मद क़ासिर
ऊँचे दर्जे का सैलाब
ग़ुलाम मोहम्मद क़ासिर
तज़ाद
ग़ुलाम मोहम्मद क़ासिर
दुआ और बद-दुआ के दरमियाँ
ग़ुलाम मोहम्मद क़ासिर
फिर तो इस बे-नाम सफ़र में कुछ भी न अपने पास रहा
ग़ुलाम मोहम्मद क़ासिर
ख़ामोश थे तुम और बोलता था बस एक सितारा आँखों में
ग़ुलाम मोहम्मद क़ासिर
कहीं लोग तन्हा कहीं घर अकेले
ग़ुलाम मोहम्मद क़ासिर
हिज्र के तपते मौसम में भी दिल उन से वाबस्ता है
ग़ुलाम मोहम्मद क़ासिर
अपने अपने लहू की उदासी लिए सारी गलियों से बच्चे पलट आएँगे
ग़ुलाम हुसैन साजिद
रफ़्ता रफ़्ता आँखों को हैरानी दे कर जाएगा
ग़ज़नफ़र
पिया ख़मोश है मेरा
ग़ौसिया ख़ान सबीन
दिल की नय्या दो नैनों के मोह में डूबी जाए
ग़ौस सीवानी
हुआ करेगा हर इक लफ़्ज़ मुश्क-बार अपना
ग़ालिब अयाज़
फिर हुआ वक़्त कि हो बाल-कुशा मौज-ए-शराब
ग़ालिब
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