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Collection: मौज Hindi Poetry | Best Hindi Shayari & Poems - Page 30 - Darsaal

मौज Poetry (page 30)

काँच की ज़ंजीर टूटी तो सदा भी आएगी

अफ़ज़ल मिनहास

मैं अपने वास्ते रस्ता नया निकालता हूँ

आफ़ताब इक़बाल शमीम

मौज-दर-मौज हवाओं से बचा लाऊँगा

अफ़रोज़ आलम

शौक़-ए-वारफ़्ता चला शहर-ए-तमाशा की तरफ़

अफ़ीफ़ सिराज

हमारी तिश्ना-लबी अब सुबू से खेलेगी

अफ़ीफ़ सिराज

न कोई रोक सका ख़्वाब के सफ़ीरों को

आदिल मंसूरी

जीता है सिर्फ़ तेरे लिए कौन मर के देख

आदिल मंसूरी

घूम रहा था एक शख़्स रात के ख़ारज़ार में

आदिल मंसूरी

नग़्मा-ए-इश्क़-ए-बुताँ और ज़रा आहिस्ता

अदीब सहारनपुरी

किस की ख़ल्वत से निखर कर सुब्ह-दम आती है धूप

अदीब ख़लवत

मुझे रंग-ए-ख़्वाब से ज़िंदगी का यक़ीं मिला

अदा जाफ़री

काँटा सा जो चुभा था वो लौ दे गया है क्या

अदा जाफ़री

हिस नहीं तड़प नहीं बाब-ए-अता भी क्यूँ खुले

अदा जाफ़री

फूलों की तलब में थोड़ा सा आज़ार नहीं तो कुछ भी नहीं

अबु मोहम्मद सहर

हर ख़ौफ़ हर ख़तर से गुज़रना भी सीखिए

अबु मोहम्मद सहर

चाँद का रक़्स सितारों का फ़ुसूँ माँगती है

अबु मोहम्मद सहर

ख़याल लम्स का कार-ए-सवाब जैसा था

अबरार आज़मी

कुछ काम नहीं है यहाँ वहशत के बराबर

अबरार अहमद

श्याम गोकुल न जाना कि राधा का जी अब न बंसी की तानों पे लहराएगा

आबिद हशरी

क्या ख़बर कब से प्यासा था सहरा

आबिद आलमी

ये कौन मेरे अलावा मिरे वजूद में है

अब्दुर्राहमान वासिफ़

मिज़्गाँ ने रोका आँखों में दम इंतिज़ार से

अब्दुल्ल्ला ख़ाँ महर लखनवी

जो गुज़रता है गुज़र जाए जी

अब्दुल्लाह जावेद

दुनिया ने जब डराया तो डरने में लग गया

अब्दुल्लाह जावेद

गल को शर्मिंदा कर ऐ शोख़ गुलिस्तान में आ

अब्दुल वहाब यकरू

कितनी महबूब थी ज़िंदगी कुछ नहीं कुछ नहीं

अब्दुल हमीद

नख़चीर हूँ मैं कश्मकश-ए-फ़िक्र-ओ-नज़र का

अब्दुल अज़ीज़ ख़ालिद

क्या कहीं मिलता है क्या ख़्वाबों में

अब्दुल अज़ीज़ फ़ितरत

न मक़ामात न तरतीब-ए-ज़मानी अपनी

अब्दुल अहद साज़

मरने की पुख़्ता-ख़याली में जीने की ख़ामी रहने दो

अब्दुल अहद साज़

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