मौज Poetry (page 18)
रफ़्तार-ए-उम्र क़त-ए-रह-ए-इज़्तिराब है
ग़ालिब
फिर हुआ वक़्त कि हो बाल-कुशा मौज-ए-शराब
ग़ालिब
निकोहिश है सज़ा फ़रियादी-ए-बे-दाद-ए-दिलबर की
ग़ालिब
नाला जुज़ हुस्न-ए-तलब ऐ सितम-ईजाद नहीं
ग़ालिब
न होगा यक-बयाबाँ माँदगी से ज़ौक़ कम मेरा
ग़ालिब
क्यूँ जल गया न ताब-ए-रुख़-ए-यार देख कर
ग़ालिब
कल के लिए कर आज न ख़िस्सत शराब में
ग़ालिब
जुनूँ तोहमत-कश-ए-तस्कीं न हो गर शादमानी की
ग़ालिब
जब ब-तक़रीब-ए-सफ़र यार ने महमिल बाँधा
ग़ालिब
हवस को है नशात-ए-कार क्या क्या
ग़ालिब
हरीफ़-ए-मतलब-ए-मुश्किल नहीं फ़ुसून-ए-नियाज़
ग़ालिब
है किस क़दर हलाक-ए-फ़रेब-ए-वफ़ा-ए-गुल
ग़ालिब
है आरमीदगी में निकोहिश बजा मुझे
ग़ालिब
चश्म-ए-ख़ूबाँ ख़ामुशी में भी नवा-पर्दाज़ है
ग़ालिब
बिसात-ए-इज्ज़ में था एक दिल यक क़तरा ख़ूँ वो भी
ग़ालिब
आमद-ए-सैलाब-ए-तूफ़ान-ए-सदा-ए-आब है
ग़ालिब
आह को चाहिए इक उम्र असर होते तक
ग़ालिब
शाइरी बात नहीं गर्म-ए-सुख़न होने की
गौहर होशियारपुरी
समन-बरों से चमन दौलत-ए-नुमू माँगे
गौहर होशियारपुरी
कोई मंज़िल आख़िरी मंज़िल नहीं होती 'फ़ुज़ैल'
फ़ुज़ैल जाफ़री
वो मौज-ए-ख़ुनुक शहर-ए-शरर तक नहीं आई
फ़ुज़ैल जाफ़री
तेज़ आँधी रात अँधयारी अकेला राह-रौ
फ़ुज़ैल जाफ़री
दिलों के आइने धुँदले पड़े हैं
फ़ुज़ैल जाफ़री
छू भी तो नहीं सकते हम मौज-ए-सबा बन कर
फ़ुज़ैल जाफ़री
तमाम जिस्म की परतें जुदा जुदा करके
फ़िज़ा कौसरी
जुगनू
फ़िराक़ गोरखपुरी
आधी रात
फ़िराक़ गोरखपुरी
ये नर्म नर्म हवा झिलमिला रहे हैं चराग़
फ़िराक़ गोरखपुरी
तुम्हें क्यूँकर बताएँ ज़िंदगी को क्या समझते हैं
फ़िराक़ गोरखपुरी
सुना तो है कि कभी बे-नियाज़-ए-ग़म थी हयात
फ़िराक़ गोरखपुरी
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