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Collection: गंतव्य Hindi Poetry | Best Hindi Shayari & Poems - Page 42 - Darsaal

गंतव्य Poetry (page 42)

मख़रब-ए-कार हुई जोश में ख़ुद उजलत-ए-कार

आरज़ू लखनवी

होश-ओ-बे-होशी की मंज़िल एक है रस्ते जुदा

आरज़ू लखनवी

ये दास्तान-ए-दिल है क्या हो अदा ज़बाँ से

आरज़ू लखनवी

तुम्हें क्या काम नालों से तुम्हें क्या काम आहों से

आरज़ू लखनवी

तस्कीन-ए-दिल का ये क्या क़रीना

आरज़ू लखनवी

क्यूँ किसी रह-रौ से पूछूँ अपनी मंज़िल का पता

आरज़ू लखनवी

किस मस्त अदा से आँख लड़ी मतवाला बना लहरा के गिरा

आरज़ू लखनवी

जितना था सरगर्म-ए-कार उतना ही दिल नाकाम था

आरज़ू लखनवी

दिल दे रहा था जो उसे बे-दिल बना दिया

आरज़ू लखनवी

अयाँ है बे-रुख़ी चितवन से और ग़ुस्सा निगाहों से

आरज़ू लखनवी

ऐ जज़्ब-ए-मोहब्बत तू ही बता क्यूँकर न असर ले दिल ही तो है

आरज़ू लखनवी

यक़ीन-ए-सुब्ह-ए-चमन है कितना शुऊर-ए-अब्र-ए-बहार क्या है

अर्शी भोपाली

रक़्स-ए-आशुफ़्ता-सरी की कोई तदबीर सही

अर्शी भोपाली

नशीली छाँव में बीते हुए ज़मानों को

अर्शी भोपाली

दर्द की साकित नदी फिर से रवाँ होने को है

अरशद कमाल

डोरा नहीं है सुरमे का चश्म-ए-सियाह में

अरशद अली ख़ान क़लक़

ये देखें राज़-ए-दिल अब कौन करता है अयाँ पहले

अर्श सहबाई

भारत के वीर सिपाही

अर्श मलसियानी

15 अगस्त (1949)

अर्श मलसियानी

पहला सा वो जुनून-ए-मोहब्बत नहीं रहा

अर्श मलसियानी

एहसास-ए-हुस्न बन के नज़र में समा गए

अर्श मलसियानी

बदली हुई दुनिया की नज़र देख रहे हैं

अर्जुमंद बानो अफ़्शाँ

जो अपनी ख़्वाहिशों में तू ने कुछ कमी कर ली

आरिफ़ शफ़ीक़

वो कारवान-ए-बहाराँ कि बे-दरा होगा

आरिफ़ अब्दुल मतीन

जो उभरे वक़्त के साँचे में ढल के

आरिफ़ अब्दुल मतीन

हवस का रंग चढ़ा उस पे और उतर भी गया

अक़ील शादाब

वो जानता है उस की दलीलों में दम नहीं

अक़ील नोमानी

तमन्नाएँ जवाँ थीं इश्क़ फ़रमाने से पहले

अक़ील नोमानी

कहाँ मुमकिन है पोशीदा ग़म-ए-दिल का असर होना

अनवरी जहाँ बेगम हिजाब

चला मैं जानिब-ए-मंज़िल तो ये हुआ मालूम

अनवर सदीद

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