गंतव्य Poetry (page 40)
न जिस का कोई सहारा हो वो किधर जाए
औलाद अली रिज़वी
ख़्वाहिशें दुनिया की बार-ए-दोश-ओ-गर्दन हो गईं
औज लखनवी
मोहब्बतें भी लिखी हुई हैं अदावतें भी लिखी हुई हैं
अतहर सलीमी
जीना है तो जीने का सहारा भी तो होगा
अतहर राज़
ग़म के बादल दिल-ए-नाशाद पे ऐसे छाए
अतहर राज़
चुप-चाप हब्स-ए-वक़्त के पिंजरे में मर गया
अतहर नासिक
न मंज़िल हूँ न मंज़िल-आश्ना हूँ
अतहर नफ़ीस
मोहब्बत की मंज़िल
अतीया दाऊद
वक़्त ने लूटे हैं हस्ती के ख़ज़ाने कितने
अतीब एजाज़
वो एक शख़्स कि मंज़िल भी रास्ता भी है
अताउल हक़ क़ासमी
वो एक शख़्स कि मंज़िल भी रास्ता भी है
अताउल हक़ क़ासमी
वह एक शख़्स कि मंज़िल भी रास्ता भी है
अताउल हक़ क़ासमी
तिफ़्ली के ख़्वाब
असरार-उल-हक़ मजाज़
रात और रेल
असरार-उल-हक़ मजाज़
फ़िक्र
असरार-उल-हक़ मजाज़
अँधेरी रात का मुसाफ़िर
असरार-उल-हक़ मजाज़
वो नक़ाब आप से उठ जाए तो कुछ दूर नहीं
असरार-उल-हक़ मजाज़
नहीं ये फ़िक्र कोई रहबर-ए-कामिल नहीं मिलता
असरार-उल-हक़ मजाज़
न हम-आहंग-ए-मसीहा न हरीफ़-ए-जिब्रील
असरार-उल-हक़ मजाज़
करिश्मा-साजी-ए-दिल देखता हूँ
असरार-उल-हक़ मजाज़
कमाल-ए-इश्क़ है दीवाना हो गया हूँ मैं
असरार-उल-हक़ मजाज़
अक़्ल की सतह से कुछ और उभर जाना था
असरार-उल-हक़ मजाज़
अक्स जल जाएँगे आईने बिखर जाएँगे
असलम महमूद
सोच की उलझी हुई झाड़ी की जानिब जो गई
असलम कोलसरी
भीगे शेर उगलते जीवन बीत गया
असलम कोलसरी
कोई मंज़िल नहीं बाक़ी है मुसाफ़िर के लिए
असलम फ़र्रुख़ी
ज़द पे आ जाएगा जो कोई तो मर जाएगा
असलम फ़र्रुख़ी
दिल की धड़कन अब रग-ए-जाँ के बहुत नज़दीक है
असलम इमादी
हर सू है तारीकी छाई तुम भी चुप और हम भी चुप
असलम आज़ाद
एक नज़्म
असलम अंसारी
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