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Collection: गंतव्य Hindi Poetry | Best Hindi Shayari & Poems - Page 37 - Darsaal

गंतव्य Poetry (page 37)

ग़म्ज़ा-ए-मा'शूक़ मुश्ताक़ों को दिखलाती है तेग़

बयान मेरठी

उन का बर्बाद-ए-करम कहने के क़ाबिल हो गया

बासित भोपाली

सब काएनात-ए-हुस्न का हासिल लिए हुए

बासित भोपाली

इश्क़-ए-सितम-परस्त क्या हुस्न-ए-सितम-शिआ'र क्या

बासित भोपाली

तुझ को देख रहा हूँ मैं

बासिर सुल्तान काज़मी

दिल में हर-चंद आरज़ू थी बहुत

बासिर सुल्तान काज़मी

सुहाने सपने आए हैं

बशीर महताब

किस मस्ती में अब रहता हूँ

बशीर महताब

तज़्किरे में तिरे इक नाम को यूँ जोड़ दिया

बशीर फ़ारूक़ी

जिस दिन से चला हूँ मिरी मंज़िल पे नज़र है

बशीर बद्र

आँखों में रहा दिल में उतर कर नहीं देखा

बशीर बद्र

मुब्तला-ए-इ'ताब हैं हम लोग

बशीरुद्दीन राज़

रब्त हर बज़्म से टूटे तिरी महफ़िल के सिवा

बशर नवाज़

जब छाई घटा लहराई धनक इक हुस्न-ए-मुकम्मल याद आया

बशर नवाज़

बहुत था ख़ौफ़ जिस का फिर वही क़िस्सा निकल आया

बशर नवाज़

ब-हर-उनवाँ मोहब्बत को बहार-ए-ज़िंदगी कहिए

बशर नवाज़

ताबिश-ए-हुस्न हिजाब-ए-रुख़-ए-पुर-नूर नहीं

बर्क़ देहलवी

दिल जो सूरत-गर-ए-मअ'नी का सनम-ख़ाना बने

बर्क़ देहलवी

यही रस्ता है अब यही मंज़िल

बाक़ी सिद्दीक़ी

वो नज़र आईना-फ़ितरत ही सही

बाक़ी सिद्दीक़ी

वक़्त रस्ते में खड़ा है कि नहीं

बाक़ी सिद्दीक़ी

जुनूँ की राख से मंज़िल में रंग क्या आए

बाक़ी सिद्दीक़ी

दाग़-ए-दिल हम को याद आने लगे

बाक़ी सिद्दीक़ी

तू नहीं तो तेरा दर्द-ए-जाँ-फ़ज़ा मिल जाएगा

बाक़ी अहमदपुरी

सामने सब के न बोलेंगे हमारा क्या है

बाक़ी अहमदपुरी

रह-रवाँ कहते हैं जिस को जरस-ए-महमिल है

बक़ा उल्लाह 'बक़ा'

बहुत है एक नज़र

बाक़र मेहदी

अलविदा'अ

बाक़र मेहदी

किसी पे कोई भरोसा करे तो कैसे करे

बाक़र मेहदी

फ़रेब खा के भी शर्मिंदा-ए-सुकूँ न हुए

बाक़र मेहदी

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