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Collection: गंतव्य Hindi Poetry | Best Hindi Shayari & Poems - Page 36 - Darsaal

गंतव्य Poetry (page 36)

होती नहीं रसाई-ए-बर्क़-ए-तपाँ कहाँ

ब्रहमा नन्द जलीस

वही होती है रहबर जो तमन्ना दिल में होती है

बिस्मिल सईदी

रह-रव-ए-राह-ए-मोहब्बत कौन सी मंज़िल में है

बिस्मिल सईदी

रहरव-ए-राह-ए-मोहब्बत रह न जाना राह में

बिस्मिल अज़ीमाबादी

सरफ़रोशी की तमन्ना अब हमारे दिल में है

बिस्मिल अज़ीमाबादी

रुख़ पे गेसू जो बिखर जाएँगे

बिस्मिल अज़ीमाबादी

ज़ब्त-ए-नाला दिल-ए-फ़िगार न कर

बिर्ज लाल रअना

जिस्म में ख़्वाहिश न थी एहसास में काँटा न था

बिमल कृष्ण अश्क

कब इक मक़ाम पे रुकती है सर-फिरी है हवा

बिलक़ीस ज़फ़ीरुल हसन

कहाँ पहुँचेगा वो कहना ज़रा मुश्किल सा लगता है

भवेश दिलशाद

अजब जौबन है गुल पर आमद-ए-फ़स्ल-ए-बहारी है

भारतेंदु हरिश्चंद्र

समुंदरों को भी दरिया समझ रहे हैं हम

भारत भूषण पन्त

सच्चाइयों को बर-सर-ए-पैकार छोड़ कर

भारत भूषण पन्त

मिरी ही बात सुनती है मुझी से बात करती है

भारत भूषण पन्त

किसी भी सम्त निकलूँ मेरा पीछा रोज़ होता है

भारत भूषण पन्त

कभी सुकूँ कभी सब्र-ओ-क़रार टूटेगा

भारत भूषण पन्त

कब तक गर्दिश में रहना है कुछ तो बता अय्याम मुझे

भारत भूषण पन्त

जुस्तुजू मेरी कहीं थी और मैं भटका कहीं

भारत भूषण पन्त

इश्क़ का रोग तो विर्से में मिला था मुझ को

भारत भूषण पन्त

हर एक रात में अपना हिसाब कर के मुझे

भारत भूषण पन्त

दयार-ए-ज़ात में जब ख़ामुशी महसूस होती है

भारत भूषण पन्त

बेताब रहें हिज्र में कुछ दिल तो नहीं हम

बेख़ुद देहलवी

ऐ जज़्बा-ए-दिल गर मैं चाहूँ हर चीज़ मुक़ाबिल आ जाए

बहज़ाद लखनवी

यूँ तो जो चाहे यहाँ साहब-ए-महफ़िल हो जाए

बहज़ाद लखनवी

तुम्हारे हुस्न की तस्ख़ीर आम होती है

बहज़ाद लखनवी

है ख़िरद-मंदी यही बा-होश दीवाना रहे

बहज़ाद लखनवी

ऐ जज़्बा-ए-दिल गर मैं चाहूँ हर चीज़ मुक़ाबिल आ जाए

बहज़ाद लखनवी

न सुनो मेरे नाले हैं दर्द-भरे दार-ओ-असरे आह-ए-सहरे

बेदम शाह वारसी

अल्लाह-रे फ़ैज़ एक जहाँ मुस्तफ़ीद है

बेदम शाह वारसी

हक़ पसंदों से जहाँ बर-सर-ए-पैकार सही

बेबाक भोजपुरी

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