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Collection: गंतव्य Hindi Poetry | Best Hindi Shayari & Poems - Page 24 - Darsaal

गंतव्य Poetry (page 24)

हर मोड़ नई इक उलझन है क़दमों का सँभलना मुश्किल है

इक़बाल सफ़ी पूरी

दामन-ए-दिल है तार तार अपना

इक़बाल सफ़ी पूरी

ज़मीं मदार से अपने अगर निकल जाए

इक़बाल नवेद

राह दोनों की वही है सामना हो जाएगा

इक़बाल माहिर

सुपुर्द-ए-ग़म-ज़दगान-ए-सफ़-ए-वफ़ा हुआ मैं

इक़बाल कौसर

वो आ रहे हैं वो जा रहे हैं मिरे तसव्वुर पे छा रहे हैं

इक़बाल हुसैन रिज़वी इक़बाल

नज़र जिन की उलझ जाती है उन की ज़ुल्फ़-ए-पेचाँ से

इक़बाल हुसैन रिज़वी इक़बाल

दिल-ए-मुज़्तर को हम कुछ इस तरह समझाए जाते हैं

इक़बाल हुसैन रिज़वी इक़बाल

ज़ब्त भी चाहिए ज़र्फ़ भी चाहिए और मोहतात पास-ए-वफ़ा चाहिए

इक़बाल अज़ीम

सब समझते हैं कि हम किस कारवाँ के लोग हैं

इक़बाल अज़ीम

बस हो चुका हुज़ूर ये पर्दे हटाइए

इक़बाल अज़ीम

मिले वो दर्स मुझ को ज़िंदगी से

इक़बाल आबिदी

घड़ी में अक्स-ए-इंसाँ

इंतिख़ाब अालम

दिल की राहों से दबे पाँव गुज़रने वाला

इंद्र मोहन मेहता कैफ़

वो आते-जाते इधर देखता ज़रा सा है

इनाम कबीर

अगर है रेत की दीवार ध्यान टूटेगा

इम्तियाज़ अहमद राही

ठहर के देख तू इस ख़ाक से क्या क्या निकल आया

इमरान शमशाद

तेरी मुश्किल किसी को क्या मालूम

इमरान शमशाद

लोगों के सभी फ़लसफ़े झुटला तो गए हम

इमरान हुसैन आज़ाद

साक़ी तिरे बग़ैर है महफ़िल से दिल उचाट

इमदाद अली बहर

मैं गिला तुम से करूँ ऐ यार किस किस बात का

इमदाद अली बहर

ख़ूब-रू सब हैं मगर हूरा-शमाइल एक है

इमदाद अली बहर

जाते है ख़ानक़ाह से वाइज़ सलाम है

इमदाद अली बहर

ग़मों की भीड़ में रस्ता बना के चलता हूँ

इलियास बाबर आवान

मौत सी ख़मोशी जब उन लबों पे तारी की

इकराम मुजीब

उस के चेहरे की चमक के सामने सादा लगा

इफ़्तिख़ार नसीम

रुख़्सत-ए-यार का मज़मून ब-मुश्किल बाँधा

इफ़्तिख़ार मुग़ल

वो क्या मंज़िल जहाँ से रास्ते आगे निकल जाएँ

इफ़्तिख़ार आरिफ़

शहर-आशोब

इफ़्तिख़ार आरिफ़

एक कहानी बहुत पुरानी

इफ़्तिख़ार आरिफ़

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