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Collection: दृश्य Hindi Poetry | Best Hindi Shayari & Poems - Page 21 - Darsaal

दृश्य Poetry (page 21)

ढूँडिए दिन रात हफ़्तों और महीनों के बटन

इमरान शमशाद

वो शाम ढले तेरा मिलना वो तेरा हँसाना याद नहीं

इमरान साग़र

इस दश्त से आगे भी कोई दश्त-ए-गुमाँ है

इमरान आमी

शहर में ओले पड़े हैं सर सलामत है कहाँ

इमाम अाज़म

अपना अपना दुख बतलाना होता है

इलियास बाबर आवान

इस हसीन मंज़र से दुख कई उभरने हैं

इकराम मुजीब

ज़हर में बुझे सारे तीर हैं कमानों पर

इकराम मुजीब

अपने ख़ूँ को ख़र्च किया है और कमाया शहर

इफ़्तिख़ार क़ैसर

शाम से तन्हा खड़ा हूँ यास का पैकर हूँ मैं

इफ़्तिख़ार नसीम

बन गया है जिस्म गुज़रे क़ाफ़िलों की गर्द सा

इफ़्तिख़ार नसीम

अपना सारा बोझ ज़मीं पर फेंक दिया

इफ़्तिख़ार नसीम

भर आईं आँखें किसी भूली याद से शाम के मंज़र में

इफ़्तिख़ार बुख़ारी

कोई जुनूँ कोई सौदा न सर में रक्खा जाए

इफ़्तिख़ार आरिफ़

शहर-आशोब

इफ़्तिख़ार आरिफ़

सौग़ात

इफ़्तिख़ार आरिफ़

रौशन दिल वालों के नाम

इफ़्तिख़ार आरिफ़

पस च-बायद-कर्द

इफ़्तिख़ार आरिफ़

एक रुख़

इफ़्तिख़ार आरिफ़

एक कहानी बहुत पुरानी

इफ़्तिख़ार आरिफ़

बद-शुगूनी

इफ़्तिख़ार आरिफ़

बदन-दरीदा रूहों के नाम एक नज़्म

इफ़्तिख़ार आरिफ़

ये क़र्ज़-ए-कज-कुलही कब तलक अदा होगा

इफ़्तिख़ार आरिफ़

ये अब खुला कि कोई भी मंज़र मिरा न था

इफ़्तिख़ार आरिफ़

कोई जुनूँ कोई सौदा न सर में रक्खा जाए

इफ़्तिख़ार आरिफ़

ख़्वाब देखने वाली आँखें पत्थर होंगी तब सोचेंगे

इफ़्तिख़ार आरिफ़

ख़ल्क़ ने इक मंज़र नहीं देखा बहुत दिनों से

इफ़्तिख़ार आरिफ़

ख़ूँ में तर सब्र की चादर कहाँ ले जाओगे

इफ़्फ़त अब्बास

मिरे ही दिल को अपना घर समझना

इबरत बहराईची

राज़ कहाँ तक राज़ रहेगा मंज़र-ए-आम पे आएगा

इब्न-ए-इंशा

उलझनें इतनी थीं मंज़र और पस-मंज़र के बीच

हुसैन ताज रिज़वी

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