दृश्य Poetry
वो निशाना भी ख़ता जाता तो बेहतर होता
अब्दुल्लाह कमाल
हिजरत
ग़ज़नफ़र
रौशनी के सिलसिले ख़्वाबों में ढल कर रह गए
असरार ज़ैदी
मैं रस्ते में जहाँ ठहरा हुआ था
वफ़ा नक़वी
हद से बढ़ती हुई ता'ज़ीर में देखा जाए
नईम गिलानी
इश्क़ को आँख में जलते देखा
नजमा शाहीन खोसा
अफ़्सूँ पहली बारिश का
मसूद मिर्ज़ा नियाज़ी
इमारत हो कि ग़ुर्बत बोलती है
वलीउल्लाह वली
यौम-ए-बर्क़
बिर्ज लाल रअना
इस दिल से मिरे इश्क़ के अरमाँ को निकालो
वो सानेहा हुआ था कि बस दिल दहल गए!
ज़ुल्फ़िक़ार अहमद ताबिश
यूँ जो पलकों को मिला कर नहीं देखा जाता
ज़ुल्फ़िक़ार आदिल
वो बूढ़ा इक ख़्वाब है और इक ख़्वाब में आता रहता है
ज़ुल्फ़िक़ार आदिल
शुक्र किया है इन पेड़ों ने सब्र की आदत डाली है
ज़ुल्फ़िक़ार आदिल
सारा बाग़ उलझ जाता है ऐसी बे-तरतीबी से
ज़ुल्फ़िक़ार आदिल
सहराओं के दोस्त थे हम ख़ुद-आराई से ख़त्म हुए
ज़ुल्फ़िक़ार आदिल
कुछ ख़ाक से है काम कुछ इस ख़ाक-दाँ से है
ज़ुल्फ़िक़ार आदिल
तिलस्माती फ़ज़ा तख़्त-ए-सुलैमाँ पर लिए जाना
ज़ुबैर शिफ़ाई
औरतों की आँखों पर काले काले चश्मे थे सब की सब बरहना थीं
ज़ुबैर रिज़वी
सम्तों का ज़वाल
ज़ुबैर रिज़वी
वो बाद-ए-गर्म था बाद-ए-सबा के होते हुए
ज़ुबैर रिज़वी
शाम होने वाली थी जब वो मुझ से बिछड़ा था ज़िंदगी की राहों में
ज़ुबैर रिज़वी
शफ़क़-सिफ़ात जो पैकर दिखाई देता है
ज़ुबैर रिज़वी
क़सीदे ले के सारे शौकत-ए-दरबार तक आए
ज़ुबैर रिज़वी
कोई चेहरा न सदा कोई न पैकर होगा
ज़ुबैर रिज़वी
कभी ख़िरद से कभी दिल से दोस्ती कर ली
ज़ुबैर रिज़वी
नज़र नज़र से मिलाओगे मारे जाओगे
ज़ुबैर क़ैसर
उन आँखों की हैरत और दबीज़ करूँ
ज़िया-उल-मुस्तफ़ा तुर्क
कहीं ये लम्हा-ए-मौजूद वाहिमा ही न हो
ज़िया-उल-मुस्तफ़ा तुर्क
तसलसुल
ज़िया जालंधरी
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