लहू Poetry (page 31)
सब लहू जम गया उबाल के बीच
आरिफ़ इमाम
हवस का रंग चढ़ा उस पे और उतर भी गया
अक़ील शादाब
मेरी नज़र के लिए कोई रिवायत न थी
अनवर सिद्दीक़ी
पियो कि मा-हसल-ए-होश किस ने देखा है
अनवर शऊर
ख़त्म हर अच्छा बुरा हो जाएगा
अनवर शऊर
दुश्मन तो मेरे तन से लहू चूसता रहा
अनवर सदीद
मैं ख़ुश हूँ अगर गुलशन के लिए कुछ मेरा लहू काम आ जाए
अनवर मिर्ज़ापुरी
इस वास्ते दामन चाक किया शायद ये जुनूँ काम आ जाए
अनवर मिर्ज़ापुरी
जब ज़मीं के मुक़द्दर सँवर जाएँगे
अनवर मीनाई
केंचुली बदलती रात
अनवार फ़ितरत
जब मिरी ज़ीस्त के उनवाँ नए मतलूब हुए
अनवर मोअज़्ज़म
दिल यही सोच के बेताब हुआ जाता है
अनुभव गुप्ता
हम बे-वतन ख़्वाबों के जोलाहे हैं
अंजुम सलीमी
गिर्या
अंजुम सलीमी
किस की जबीं पे हैं ये सितारे अरक़ अरक़
अंजुम रूमानी
दिन हो कि रात, कुंज-ए-क़फ़स हो कि सेहन-ए-बाग़
अंजुम रूमानी
दिन हो कि रात कुंज-ए-क़फ़स हो कि सेहन-ए-बाग़
अंजुम रूमानी
बदल चुके हैं सब अगली रिवायतों के निसाब
अंजुम ख़लीक़
आबादियों में कैसे दरिंदे घुस आए हैं
अंजुम इरफ़ानी
फ़सील-ए-जिस्म पे शब-ख़ूँ शरारतें तेरी
अंजुम इरफ़ानी
धूप आती नहीं रुख़ अपना बदल कर देखें
अंजुम इरफ़ानी
और कुछ याद नहीं अब से न तब से पूछो
अंजुम इरफ़ानी
सुन कहा मान न मानेगा तो पछताएगा
अंजुम फ़ौक़ी बदायूनी
मुसलमाँ ग़ौर कर क्यूँ आज तेरी
अनीसा बेगम
एक नज़्म
अनीस नागी
तुम्हारे शहर में इतने मकाँ गिरे कैसे
अनीस अंसारी
भर नहीं पाया अभी तक ज़ख़्म-ए-कारी हाए हाए
अनीस अंसारी
मोहिब्बान-ए-वतन का नारा
आनंद नारायण मुल्ला
छुप के दुनिया से सवाद-ए-दिल-ए-ख़ामोश में आ
आनंद नारायण मुल्ला
उन के वा'दों का हाल क्या कहिए
अमजद नजमी
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