लहू Poetry (page 27)
हुआ जब सामना उस ख़ूब-रू से
दाग़ देहलवी
बदन को अपनी बिसात तक तो पसारना था
चंद्र प्रकाश शाद
रामायण का एक सीन
चकबस्त ब्रिज नारायण
मर्सिया गोपाल कृष्ण गोखले
चकबस्त ब्रिज नारायण
ख़ाक-ए-हिंद
चकबस्त ब्रिज नारायण
उन्हें ये फ़िक्र है हर दम नई तर्ज़-ए-जफ़ा क्या है
चकबस्त ब्रिज नारायण
मिरी रात मेरा चराग़ मेरी किताब दे
बुशरा एजाज़
बदन पे ज़ख़्म सजाए लहू लबादा किया
बिलक़ीस ज़फ़ीरुल हसन
ख़ुद पर जो ए'तिमाद था झूटा निकल गया
भारत भूषण पन्त
इक गर्दिश-ए-मुदाम भी तक़दीर में रही
भारत भूषण पन्त
उन को दिमाग़-ए-पुर्सिश-ए-अहल-ए-मेहन कहाँ
बेखुद बदायुनी
उदास काग़ज़ी मौसम में रंग ओ बू रख दे
बेकल उत्साही
चश्म-ए-हसीं में है न रुख़-ए-फ़ित्ना-गर में है
बहज़ाद लखनवी
ये दिल जो मुज़्तरिब रहता बहुत है
बेदिल हैदरी
रक़्क़ासा-ए-औहाम
बेबाक भोजपुरी
रौनक़ फ़रोग़-ए-दर्द से कुछ अंजुमन में है
बेबाक भोजपुरी
बख़्त क्या जाने भला या कि बुरा होता है
बेबाक भोजपुरी
लहू टपका किसी की आरज़ू से
बयान मेरठी
लहू टपका किसी की आरज़ू से
बयाँ अहसनुल्लाह ख़ान
फ़रहाद किस उम्मीद पे लाता है जू-ए-शीर
बयाँ अहसनुल्लाह ख़ान
ज़ब्त-ए-ग़म कर भी लिया तो क्या किया
बासित भोपाली
यूँ खुल गया है राज़-ए-शिकस्त-ए-तलब कभी
बशीर ज़ैदी असीर
इक हुस्न-ए-बे-मिसाल के जो रू-ब-रू हूँ मैं
बशीर सैफ़ी
वही है रंग मगर बू है कुछ लहू जैसी
बशर नवाज़
उन का या अपना तमाशा देखो
बाक़ी सिद्दीक़ी
कहता है हर मकीं से मकाँ बोलते रहो
बाक़ी सिद्दीक़ी
बुझी बुझी है सदा-ए-नग़्मा कहीं कहीं हैं रबाब रौशन
बाक़र मेहदी
नए समय की कोयल
बक़ा बलूच
सर्द, तारीक रात
बलराज कोमल
ड्रग स्टोर
बलराज कोमल
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