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Collection: लहू Hindi Poetry | Best Hindi Shayari & Poems - Page 12 - Darsaal

लहू Poetry (page 12)

हस्ब-ए-फ़रमान-ए-अमीर-ए-क़ाफ़िला चलते रहे

सय्यद नसीर शाह

फूटे मन से बोल, लगा ये ज़िंदा हूँ मैं

सौरभ शेखर

कीजिए न असीरी में अगर ज़ब्त नफ़स को

मोहम्मद रफ़ी सौदा

जो गुज़री मुझ पे मत उस से कहो हुआ सो हुआ

मोहम्मद रफ़ी सौदा

नुमू-पज़ीर है इक दश्त-ए-बे-नुमू मुझ में

सऊद उस्मानी

शुऊर की तह के फाटकों पर

सत्यपाल आनंद

फ़ता-कल्लमू तअ'रफू

सत्यपाल आनंद

आगही का जाल

सरवत ज़ेहरा

हमारे लिए सुब्ह के होंट पर बद-दुआ' है

सरमद सहबाई

कौन है किस ने पुकारा है सदा कैसे हुई

सरमद सहबाई

कैसे टहलता है चाँद

सारा शगुफ़्ता

शेर-इमदाद-अली का मेडक

साक़ी फ़ारुक़ी

मुर्दा-ख़ाना

साक़ी फ़ारुक़ी

घर

साक़ी फ़ारुक़ी

एक कुत्ता नज़्म

साक़ी फ़ारुक़ी

बाकिरा

साक़ी फ़ारुक़ी

मैं तेरे ज़ुल्म दिखाता हूँ अपना मातम करने के लिए

साक़ी फ़ारुक़ी

हमारी तबाही में कुछ उस का एहसाँ भी है

साक़ी फ़ारुक़ी

बाहर के असरार लहू के अंदर खुलते हैं

साक़ी फ़ारुक़ी

कुछ भी समझ न पाओगे मेरे बयान से

संजय मिश्रा शौक़

गई नहीं तिरे ज़ुल्म-ओ-सितम की ख़ू अब तक

संजय मिश्रा शौक़

फ़ज़ा-ए-ज़ेहन की जलती हवा बदलने तक

संजय मिश्रा शौक़

शरह-ए-जमाल कीजे शहादत के मा-सिवा

समद अंसारी

बग़दाद

सलमान अंसारी

मेरी अर्ज़ानी से मुझ को वो निकालेगा मगर

सालिम सलीम

बदन सिमटा हुआ और दश्त-ए-जाँ फैला हुआ है

सालिम सलीम

अब ऐसी बातें कोई करे जो सब के मन को लुभा जाएँ

सालिक लखनवी

ग़म-ए-हयात मिटाना है रो के देखते हैं

सलीम सिद्दीक़ी

अपने जीने के हम अस्बाब दिखाते हैं तुम्हें

सलीम सिद्दीक़ी

ज़मीं को सज्दा किया ख़ूँ से बा-वज़ू हो कर

सलीम शाहिद

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