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Collection: लहू Hindi Poetry | Best Hindi Shayari & Poems - Darsaal

लहू Poetry

हासिल किसी से नक़्द-ए-हिमायत न कर सका

ग़ुलाम हुसैन साजिद

अब शहर में कहाँ रहे वो बा-वक़ार लोग

फ़ज़ा इब्न-ए-फ़ैज़ी

जो पहले ज़रा सी नवाज़िश करे है

फ़ारूक़ रहमान

सलाम लोगो

हबीब जालिब

मैं बच गई माँ

ज़ेहरा निगाह

हर-सम्त ताज़गी सी झरनों की नग़्मगी से कितनी

जाफ़र रज़ा

वो बुत बिना निगाह जमाए खड़ा रहा

अनवर अंजुम

सियाह-रात पशेमाँ है हम-रकाबी से

अहमद फ़ाख़िर

लज़्ज़त-ए-हिज्र ने तड़पाया बहुत रुस्वा किया

नसीम शेख़

कोई चराग़ न जुगनू सफ़र में रक्खा गया

वफ़ा नक़वी

बटे रहोगे तो अपना यूँही बहेगा लहू

हबीब जालिब

यूँ पाबंद-ए-सलासिल हो कर कौन फिरे बाज़ारों में

असरार ज़ैदी

गाँधी के बा'द

इज़हार मलीहाबादी

टीपू-सुल्तान

इज्तिबा रिज़वी

ख़रगोश का ग़म

बलराज कोमल

हिदायत

एहतिशाम अख्तर

आख़िरी आदमी

फ़ख़्र-ए-आलम नोमानी

दुश्मन की तरफ़ दोस्ती का हाथ

मुनीर नियाज़ी

बदन को छू लें तिरे और सुर्ख़-रू हो लें

वक़्त के पास कहाँ सारे हवाले होंगे

ज़ुल्फ़िकार नक़वी

कातता हूँ रात-भर अपने लहू की धार को

ज़ुल्फ़िक़ार अहमद ताबिश

सम्तों का ज़वाल

ज़ुबैर रिज़वी

हम कहाँ आ गए

ज़ुबैर रिज़वी

कहाँ मैं जाऊँ ग़म-ए-इश्क़-ए-राएगाँ ले कर

ज़ुबैर रिज़वी

गोश-ए-मुश्ताक़-ए-सदा-ए-नाला-ए-दिल अब कहाँ

ज़ियाउद्दीन अहमद शकेब

तसलसुल

ज़िया जालंधरी

शहर-ए-आशोब

ज़िया जालंधरी

इम्कान

ज़िया जालंधरी

हाबील

ज़िया जालंधरी

बड़ा शहर

ज़िया जालंधरी

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