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Collection: खिड़की Hindi Poetry | Best Hindi Shayari & Poems - Page 3 - Darsaal

खिड़की Poetry (page 3)

मेज़ पे चेहरा ज़ुल्फ़ें काग़ज़ पर

शहनवाज़ ज़ैदी

ये हम कौन हैं

शाहीन मुफ़्ती

सर झुका लेता था पहले जिस को अक्सर देख कर

सरमद सहबाई

किस शख़्स की तलाश में सर फोड़ती रही

सरमद सहबाई

फिर कोई महशर उठाने मेरी तन्हाई में आ

सलीम शाहिद

इन दर-ओ-दीवार की आँखों से पट्टी खोल कर

सलीम शाहिद

अब्र सरका चाँद की चेहरा-नुमाई हो गई

सलीम शाहिद

आँख के कुंज में इक दश्त-ए-तमन्ना ले कर

सलीम बेताब

ज़िंदगी

सलाम मछली शहरी

रात कई दिनों से ग़ाएब थी

सलाहुद्दीन परवेज़

चैत

सलाहुद्दीन परवेज़

कलियाँ नीला आसमान ज़ंजीर

साजिदा ज़ैदी

दिल के आँगन में जो दीवार उठा ली जाए

साजिद प्रेमी

ग़म रात-दिन रहे तो ख़ुशी भी कभी रही

सईद अख़्तर

देखो ऐसा अजब मुसाफ़िर फिर कब लौट के आता है

साबिर वसीम

पहली बरसात की घटा छाई

रिफ़अत अल हुसैनी

ज़ियादा पास मत आना

रहमान फ़ारिस

ये मिरी रूह सियह रात में निकली है कहाँ

रउफ़ रज़ा

ज़ात के कमरे में बैठा हूँ मैं खिड़की खोल कर

रशीद निसार

तू कोई ख़्वाब नहीं जिस से किनारा कर लें

राना आमिर लियाक़त

औरत कुत्ता और पड़ोस

राजेन्द्र मनचंदा बानी

अक्स कोई किसी मंज़र में न था

राजेन्द्र मनचंदा बानी

बखेड़े

राज नारायण राज़

'मीर' की सादगी बयान में रख

रहमत अमरोहवी

आरज़ूओं का नगर छोड़ आए

रहमत अमरोहवी

तआरुफ़

राही मासूम रज़ा

फेंक दे बाहर की जानिब अपने अंदर की घुटन

इक़बाल नवेद

ये ज़मीं हम को मिली बहते हुए पानी के साथ

इक़बाल नवेद

आँख ने धोका खाया था या साया था

इनाम नदीम

सोचता हूँ सदा मैं ज़मीं पर अगर कुछ कभी बाँटता

इनआम आज़मी

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