खेल Poetry (page 9)
किसी ने कैसे ख़ज़ाने में रख लिया है मुझे
फ़ैसल अजमी
इंक़िलाबी औरत
फ़हमीदा रियाज़
सहराओं ने माँगा पानी
फ़हमी बदायूनी
सब खेल-तमाशा ख़त्म हुआ
फ़हीम शनास काज़मी
वो तमाशा ओ खेल होली का
फ़ाएज़ देहलवी
जान-ए-अय्याम-ए-दिलबरी है याद
फ़ाएज़ देहलवी
तुम ऐसा करना कि कोई जुगनू कोई सितारा सँभाल रखना
एज़ाज़ अहमद आज़र
हुआ के खेल में शिरकत के वास्ते मुझ को
एजाज़ गुल
थम गई वक़्त की रफ़्तार तिरे कूचे में
एजाज़ गुल
नहीं शौक़-ए-ख़रीदारी में दौड़े जा रहा है
एजाज़ गुल
कभी क़तार से बाहर कभी क़तार के बीच
एजाज़ गुल
क्रिकेट और मुशाइरा
दिलावर फ़िगार
इक क़तरे को दरिया समझा मैं भी कैसा पागल हूँ
देवमणि पांडेय
डाइरी
दीप्ति मिश्रा
मानोगे इक बात कहो तो बोलूँ मैं
दीपक शर्मा दीप
फ़िदा अल्लाह की ख़िल्क़त पे जिस का जिस्म ओ जाँ होगा
दत्तात्रिया कैफ़ी
नहीं खेल ऐ 'दाग़' यारों से कह दो
दाग़ देहलवी
फिरे राह से वो यहाँ आते आते
दाग़ देहलवी
निगाह-ए-शोख़ जब उस से लड़ी है
दाग़ देहलवी
बदन को अपनी बिसात तक तो पसारना था
चंद्र प्रकाश शाद
जिस ने जाना जहाँ तमाशा है
बबल्स होरा सबा
जिस ने जाना जहाँ तमाशा है
बबल्स होरा सबा
हैराँ हूँ कि अब लाऊँ कहाँ से मैं ज़बाँ और
बिस्मिल साबरी
अब रहा क्या है जो अब आए हैं आने वाले
बिस्मिल अज़ीमाबादी
एआद-ए-हिकायतें
बिमल कृष्ण अश्क
अक़्ल दौड़ाई बहुत कुछ तो गुमाँ तक पहुँचे
बेताब अज़ीमाबादी
दे मोहब्बत तो मोहब्बत में असर पैदा कर
बेख़ुद देहलवी
तिरे इश्क़ में ज़िंदगानी लुटा दी
बहज़ाद लखनवी
नहीं ये जल्वा-हा-ए-राज़-ए-इरफ़ाँ देखने वाले
बासित भोपाली
ये उन का खेल तो देखो कि एक काग़ज़ पर
बशीरुद्दीन अहमद देहलवी
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