विचार Poetry (page 37)
कैसे आता है दबे पाँव गुनाहों का ख़याल
फ़े सीन एजाज़
उस की हर बात ने जादू सा किया था पहले
फ़े सीन एजाज़
नहीं ख़याल तो फिर इंतिज़ार किस का है
फ़ातिमा वसीया जायसी
दिल में मोहब्बतों के सिवा और कुछ नहीं
फ़ातिमा वसीया जायसी
दिल में इस का ख़याल क्यूँ आया
फ़ातिमा वसीया जायसी
जो ख़ुद पे बैठे बिठाए ज़वाल ले आए
फ़ारूक़ शमीम
ग़ज़लों में अब वो रंग न रानाई रह गई
फ़ारूक़ शमीम
आँधियों का ख़्वाब अधूरा रह गया
फ़ारूक़ शफ़क़
ऐ मरकज़-ए-ख़याल बिखरने लगा हूँ मैं
फ़ारूक़ नाज़की
ए मरकज़-ए-ख़याल बिखरने लगा हूँ में
फ़ारूक़ नाज़की
यूँ हुजरा-ए-ख़याल में बैठा हुआ हूँ मैं
फ़ारूक़ मुज़्तर
मैं ताइर-ए-वजूद या बर्ग-ए-ख़याल था
फ़ारूक़ मुज़्तर
वो चाँद-चेहरा सी एक लड़की
फ़ारूक़ बख़्शी
एक पुराना ख़्वाब
फरीहा नक़वी
हम एक फ़िक्र के पैकर हैं इक ख़याल के फूल
फ़ारिग़ बुख़ारी
हज़ार तर्क-ए-वफ़ा का ख़याल हो लेकिन
फ़ारिग़ बुख़ारी
यादों का अजीब सिलसिला है
फ़ारिग़ बुख़ारी
वो रौशनी है कहाँ जिस के बाद साया नहीं
फ़ारिग़ बुख़ारी
मसीह-ए-वक़्त सही हम को उस से क्या लेना
फ़ारिग़ बुख़ारी
क्या अदू क्या दोस्त सब को भा गईं रुस्वाइयाँ
फ़ारिग़ बुख़ारी
देखे कोई जो चाक-ए-गरेबाँ के पार भी
फ़ारिग़ बुख़ारी
हयात को तिरी दुश्वार किस तरह करता
फ़रहत शहज़ाद
ये फुर्क़तों में लम्हा-ए-विसाल कैसे आ गया
फ़रहत नदीम हुमायूँ
ज़मीं ने लफ़्ज़ उगाया नहीं बहुत दिन से
फ़रहत एहसास
उधर वो दश्त-ए-मुसलसल इधर मुसलसल मैं
फ़रहत एहसास
पुराना ज़ख़्म जिसे तजरबा ज़ियादा है
फ़रहत एहसास
ना-क़ाबिल-ए-यक़ीं था अगरचे शुरूअ' में
फ़रहत एहसास
नंग धड़ंग मलंग तरंग में आएगा जो वही काम करेंगे
फ़रहत एहसास
मिरे सुबूत बहे जा रहे हैं पानी में
फ़रहत एहसास
मैं तमाम गर्द-ओ-ग़ुबार हूँ मुझे मेरी सूरत-ए-हाल दे
फ़रहत एहसास
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