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Collection: सपना Hindi Poetry | Best Hindi Shayari & Poems - Page 61 - Darsaal

सपना Poetry (page 61)

मिरी विरासत में जो भी कुछ है वो सब इसी दहर के लिए है

ग़ुलाम हुसैन साजिद

मिरी सुब्ह-ए-ख़्वाब के शहर पर यही इक जवाज़ है जब्र का

ग़ुलाम हुसैन साजिद

मिरे नज्म-ए-ख़्वाब के रू-ब-रू कोई शय नहीं मिरे ढंग की

ग़ुलाम हुसैन साजिद

मता-ए-दीद तो क्या जानिए किस से इबारत है

ग़ुलाम हुसैन साजिद

मसाफ़त-ए-उम्र में ज़ियाँ का हिसाब होता है जुस्तुजू से

ग़ुलाम हुसैन साजिद

मैं अपने सूरज के साथ ज़िंदा रहूँगा तो ये ख़बर मिलेगी

ग़ुलाम हुसैन साजिद

लहू की आग अगर जलती रहेगी

ग़ुलाम हुसैन साजिद

किस ने दी आवाज़ ''सिपर की ओट में था''

ग़ुलाम हुसैन साजिद

ख़ुदा-ए-बर्तर ने आसमाँ को ज़मीन पर मेहरबाँ किया है

ग़ुलाम हुसैन साजिद

हुआ रौशन दम-ए-ख़ुर्शीद से फिर रंग पानी का

ग़ुलाम हुसैन साजिद

चराग़ की ओट में रुका है जो इक हयूला सा यासमीं का

ग़ुलाम हुसैन साजिद

चराग़ की ओट में है मेहराब पर सितारा

ग़ुलाम हुसैन साजिद

अगर ये रंगीनी-ए-जहाँ का वजूद है अक्स-ए-आसमाँ से

ग़ुलाम हुसैन साजिद

आज आईने में जो कुछ भी नज़र आता है

ग़ुलाम हुसैन साजिद

आइना-आसा ये ख़्वाब-ए-नीलमीं रक्खूँगा मैं

ग़ुलाम हुसैन साजिद

कब से बंजर थी नज़र ख़्वाब तो आया

ग़ुफ़रान अमजद

कब से बंजर थी नज़र ख़्वाब तो आया

ग़ुफ़रान अमजद

बे-चेहरगी-ए-उम्र-ए-ख़जालत भी बहुत है

ग़ज़नफ़र हाशमी

यक़ीन जानिए इस में कोई करामत है

ग़ज़नफ़र

सजा के ज़ेहन में कितने ही ख़्वाब सोए थे

ग़ज़नफ़र

जज़ीरे हों कि वो सहरा हों ख़्वाब होना है

ग़यास मतीन

आँख की पुतली में सूरज सर में कुछ सौदा उगा

ग़यास मतीन

दर्द के चाँद की तस्वीर ग़ज़ल में आए

ग़यास अंजुम

बे-नियाज़-ए-बहार सा क्यूँ है

ग़यास अंजुम

न होते शाद आईन-ए-गुलिस्ताँ देखने वाले

ग़ौस मोहम्मद ग़ौसी

कभी गुमान कभी ए'तिबार बन के रहा

ग़ालिब अयाज़

जहाँ ख़राब सही हम बदन-दरीदा सही

ग़ालिब अयाज़

दर्द जब दस्तरस-ए-चारागराँ से निकला

ग़ालिब अयाज़

सदा ब-सहरा

ग़ालिब अहमद

या रब हमें तो ख़्वाब में भी मत दिखाइयो

ग़ालिब

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