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Collection: सपना Hindi Poetry | Best Hindi Shayari & Poems - Page 57 - Darsaal

सपना Poetry (page 57)

तमाम आलम से मोड़ कर मुँह मैं अपने अंदर समा गया हूँ

हनीफ़ कैफ़ी

बिखर के रेत हुए हैं वो ख़्वाब देखे हैं

हनीफ़ कैफ़ी

बना के तोड़ती है दाएरे चराग़ की लौ

हनीफ़ कैफ़ी

जब मुंडेरों पे परिंदों की कुमक जारी थी

हम्माद नियाज़ी

हुज्रा-ए-ख़्वाब से बाहर निकला

हम्माद नियाज़ी

हमारे बस में क्या है और हमारे बस में क्या नहीं

हम्माद नियाज़ी

यक़ीन से बाहर बिखरा सच

हमीदा शाहीन

उल्टा चक्कर

हमीदा शाहीन

प्यास दायरा बनाती है

हमीदा शाहीन

परदेसी

हमीदा शाहीन

न जाने कब लिखा जाए

हमीदा शाहीन

मलाल ज़र्द-क़बाई को धो रहा होगा

हमीदा शाहीन

मुझ से ये प्यास का सहरा नहीं देखा जाता

हामिद मुख़्तार हामिद

मुझ से ये प्यास का सहरा नहीं देखा जाता

हामिद मुख़्तार हामिद

तुम अपने ख़्वाब बचा कर रक्खो कि कल दुनिया

हामिद इक़बाल सिद्दीक़ी

मंज़िल कहाँ है दूर तलक रास्ते हैं यार

हामिद इक़बाल सिद्दीक़ी

जुदाइयों के तसव्वुर ही से रुलाऊँ उसे

हामिद इक़बाल सिद्दीक़ी

तरब से हो आया हूँ और यास की तह तक डूब चुका हूँ

हमीद नसीम

तबस्सुम में न ढल जाता गुदाज़ ग़म तो क्या करते

हमीद नागपुरी

ख़ुद अपने आप से हम बे-ख़बर से गुज़रे हैं

हमीद नागपुरी

हुई मुद्दत कि उन को ख़्वाब में भी अब नहीं देखा

हमीद जालंधरी

कभी अपनों की यूरिश थी कभी ग़ैरों का रेला था

हमीद जालंधरी

याद माज़ी के चराग़ों को बुझाया न करो

हमीद अलमास

दर्द को रहने भी दे दिल में दवा हो जाएगी

हकीम मोहम्मद अजमल ख़ाँ शैदा

चर्चा हमारा इश्क़ ने क्यूँ जा-ब-जा किया

हकीम मोहम्मद अजमल ख़ाँ शैदा

हर एक आँख को कुछ टूटे ख़्वाब दे के गया

हकीम मंज़ूर

सारे चेहरे ताँबे के हैं लेकिन सब पर क़लई है

हकीम मंज़ूर

मेरे सामने मेरे घर का पूरा नक़्शा बिखरा है

हकीम मंज़ूर

हर एक आँख को कुछ टूटे ख़्वाब दे के गया

हकीम मंज़ूर

भेजता हूँ हर रोज़ मैं जिस को ख़्वाब कोई अन-देखा सा

हकीम मंज़ूर

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