सपना Poetry (page 36)
मोहलत न मिली ख़्वाब की ताबीर उठाते
सलीम कौसर
मिलना न मिलना एक बहाना है और बस
सलीम कौसर
कुछ भी था सच के तरफ़-दार हुआ करते थे
सलीम कौसर
कोई सच्चे ख़्वाब दिखाता है पर जाने कौन दिखाता है
सलीम कौसर
किस की तहवील में थे किस के हवाले हुए लोग
सलीम कौसर
कैसे हंगामा-ए-फ़ुर्सत में मिले हैं तुझ से
सलीम कौसर
कहानी लिखते हुए दास्ताँ सुनाते हुए
सलीम कौसर
कभी मौसम साथ नहीं देते कभी बेल मुंडेर नहीं चढ़ती
सलीम कौसर
इस आलम-ए-हैरत-ओ-इबरत में कुछ भी तो सराब नहीं होता
सलीम कौसर
दिल-ए-सीमाब-सिफ़त फिर तुझे ज़हमत दूँगा
सलीम कौसर
चश्म बे-ख़्वाब हुई शहर की वीरानी से
सलीम कौसर
दीद के बदले सदा दीदा-ए-तर रक्खा है
सलीम फ़िगार
दीद के बदले सदा दीदा-ए-तर रक्खा है
सलीम फ़िगार
वो तीरगी-ए-शब है कि घर लौट गए हैं
सलीम फ़राज़
सुहाने ख़्वाब आँखों में संजोना चाहता हूँ
सलीम फ़राज़
कुछ नए ख़्वाब हर इक फ़स्ल में पाले गए हैं
सलीम फ़राज़
अच्छा था कोई ख़्वाब नज़र में न पालते
सलीम फ़राज़
पड़ा हुआ मैं किसी आइने के घर में हूँ
सलीम बेताब
ये ख़्वाब और भी देखेंगे रात बाक़ी है
सलीम अहमद
मिला जो काम ग़म-ए-मो'तबर बनाने का
सलीम अहमद
कुछ हैं मंज़र हाल के कुछ ख़्वाब मुस्तक़बिल के हैं
सलीम अहमद
किसी दश्त का लब-ए-ख़ुश्क हूँ जो न पाए मुज़्दा-ए-आब तक
सलीम अहमद
इस आँख में ख़्वाब-ए-नाज़ हो जा
सलीम अहमद
बज़्म आख़िर हुई शम्ओं' का धुआँ बाक़ी है
सलीम अहमद
बैठे हैं सुनहरी कश्ती में और सामने नीला पानी है
सलीम अहमद
कश्मकश
सलाम मछली शहरी
जंगली नाच
सलाम मछली शहरी
गुरेज़
सलाम मछली शहरी
अवाम
सलाम मछली शहरी
तुम्हें मिरे ख़याल की मुसव्विरी क़ुबूल हो
सलाम मछली शहरी
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