सपना Poetry (page 35)
ख़ुद अपनी ख़्वाहिशें ख़ाक-ए-बदन में बोने को
सालिम सलीम
बुझी बुझी हुई आँखों में गोशवारा-ए-ख़्वाब
सालिम सलीम
अपने जीने के हम अस्बाब दिखाते हैं तुम्हें
सलीम सिद्दीक़ी
इक दरीचे की तमन्ना मुझे दूभर हुई है
सलीम सिद्दीक़ी
अपने जीने के हम अस्बाब दिखाते हैं तुम्हें
सलीम सिद्दीक़ी
यक़ीन है कि वो मेरी ज़बाँ समझता है
सलीम शहज़ाद
फिर न आएगा ये लम्हा सोच ले
सलीम शहज़ाद
लगता है वो आज ख़्वाब जैसा
सलीम शहज़ाद
ज़ुल्मत है तो फिर शो'ला-ए-शब-गीर निकालो
सलीम शाहिद
ये फ़ैसला भी मिरे दस्त-ए-बा-कमाल में था
सलीम शाहिद
मुर्दा रगों में ख़ून की गर्मी कहाँ से आई
सलीम शाहिद
मत पूछ कि इस पैकर-ए-ख़ुश-रंग में क्या है
सलीम शाहिद
मत पूछ हर्फ़-ए-दर्द की तफ़्सीर कुछ भी हो
सलीम शाहिद
हूँ मैं भी वही मेरा मुक़ाबिल भी वही है
सलीम शाहिद
बे-वज़्अ शब-ओ-रोज़ की तस्वीर दिखा कर
सलीम शाहिद
अब्र सरका चाँद की चेहरा-नुमाई हो गई
सलीम शाहिद
अच्छा था कोई ख़्वाब नज़र में न पालते
सलीम सरफ़राज़
यहाँ वहाँ कुछ लफ़्ज़ हैं मेरे नज़्में ग़ज़लें तेरी हैं
सलीम मुहीउद्दीन
इधर उधर से किताब देखूँ
सलीम मुहीउद्दीन
आईनों से धूल मिटाने आते हैं
सलीम मुहीउद्दीन
कहानी लिखते हुए दास्ताँ सुनाते हुए
सलीम कौसर
देखते कुछ हैं दिखाते हमें कुछ हैं कि यहाँ
सलीम कौसर
साल की आख़िरी शब
सलीम कौसर
याद कहाँ रखनी है तेरा ख़्वाब कहाँ रखना है
सलीम कौसर
वो जो हम-रही का ग़ुरूर था वो सवाद-ए-राह में जल-बुझा
सलीम कौसर
वो जो आए थे बहुत मंसब-ओ-जागीर के साथ
सलीम कौसर
तुम ने सच बोलने की जुरअत की
सलीम कौसर
तिलिस्म-ख़ाना-ए-अस्बाब मेरे सामने था
सलीम कौसर
तारे जो कभी अश्क-फ़िशानी से निकलते
सलीम कौसर
क़ुर्बतें होते हुए भी फ़ासलों में क़ैद हैं
सलीम कौसर
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