सपना Poetry (page 33)
उसी किनारा-ए-हैरत-सरा को जाता हूँ
सरवत हुसैन
मुंहदिम होती हुई आबादियों में फ़ुर्सत-ए-यक-ख़्वाब होते
सरवत हुसैन
किस पर पोशीदा और किस पे अयाँ होना था
सरवत हुसैन
जंगल में कभी जो घर बनाऊँ
सरवत हुसैन
घर से निकला तो मुलाक़ात हुई पानी से
सरवत हुसैन
इक रोज़ मैं भी बाग़-ए-अदन को निकल गया
सरवत हुसैन
आँखों में सौग़ात समेटे अपने घर आते हैं
सरवत हुसैन
आते जाते मौसमों का सिलसिला बाक़ी रहे
सरवर उस्मानी
हाँ मेरी महबूबा
सरमद सहबाई
ये जो तालाब है दरिया था कभी
सरफ़राज़ ज़ाहिद
ख़ुद से अपना आप मिलाया जा सकता है
सरफ़राज़ ज़ाहिद
दिए निगाहों के अपनी बुझाए बैठा हूँ
सरफ़राज़ नवाज़
बला से नाम वो मेरा उछाल देता है
सरफ़राज़ नवाज़
उसी के ख़्वाब थे सारे उसी को सौंप दिए
सरफ़राज़ ख़ालिद
न रात बाक़ी है कोई न ख़्वाब बाक़ी है
सरफ़राज़ ख़ालिद
आँखों ने बनाई थी कोई ख़्वाब की तस्वीर
सरफ़राज़ ख़ालिद
सहरा कोई बस्ती कोई दरिया है कि तुम हो
सरफ़राज़ ख़ालिद
जिसे तू ने समझा है ज़िंदगी उसी इंक़लाब का नाम है
सरीर काबिरी
तिरा आना मिरे घर हो गया घर ग़ैर के जाना
सरदार गेंडा सिंह मशरिक़ी
अगर उल्टी भी हो ऐ 'मशरिक़ी' तदबीर सीधी हो
सरदार गेंडा सिंह मशरिक़ी
ये ख़ल्क़ सारी हवा मेरे नाम कर देगी
सदार आसिफ़
तेरा मेरा झगड़ा क्या जब इक आँगन की मिट्टी है
सरदार अंजुम
हम-सफ़र होता कोई तो बाँट लेते दूरियाँ
सरदार अंजुम
शैली बेटी के नाम
सारा शगुफ़्ता
ज़िंदा पानी सच्चा
साक़ी फ़ारुक़ी
कैमरा
साक़ी फ़ारुक़ी
ये कौन आया शबिस्ताँ के ख़्वाब पहने हुए
साक़ी फ़ारुक़ी
वो सख़ी है तो किसी रोज़ बुला कर ले जाए
साक़ी फ़ारुक़ी
वो आग हूँ कि नहीं चैन एक आन मुझे
साक़ी फ़ारुक़ी
उम्र इंकार की दीवार से सर फोड़ती है
साक़ी फ़ारुक़ी
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