सपना Poetry (page 14)
दीवार-ओ-दर सा चाहिए दीवार-ओ-दर मुझे
विशाल खुल्लर
आग दरिया को इशारों से लगाने वाला
विशाल खुल्लर
वक़्त की ताक़ पे दोनों की सजाई हुई रात
विपुल कुमार
रोज़ ये ख़्वाब डराता है मुझे
विकास शर्मा राज़
बला का हब्स था पर नींद टूटती ही न थी
विकास शर्मा राज़
उसे छुआ ही नहीं जो मिरी किताब में था
विकास शर्मा राज़
रोज़ ये ख़्वाब डराता हैं मुझे
विकास शर्मा राज़
फ़सील-ए-शब पे तारों ने लिखा क्या
विकास शर्मा राज़
महताब फ़ज़ा के आइने में
वसाफ़ बासित
अंदरूँ नींद का इक ख़ाली मकाँ होता था
वसाफ़ बासित
क़ज़ा जो दे तो इलाही ज़रा बदल के मुझे
वारिस किरमानी
अक्सर तन्हाई से मिल कर रोए हैं
उषा भदोरिया
सबा से आती है कुछ बू-ए-आश्ना मुझ को
उर्फ़ी आफ़ाक़ी
वो ख़्वाब ही सही पेश-ए-नज़र तो अब भी है
उम्मीद फ़ाज़ली
वो ख़्वाब ही सही पेश-ए-नज़र तो अब भी है
उम्मीद फ़ाज़ली
तुम हो जो कुछ कहाँ छुपाओगे
उम्मीद फ़ाज़ली
तुम हो जो कुछ कहाँ छुपाओगे
उम्मीद फ़ाज़ली
मक़्तल-ए-जाँ से कि ज़िंदाँ से कि घर से निकले
उम्मीद फ़ाज़ली
किसी से और तो क्या गुफ़्तुगू करें दिल की
उम्मीद फ़ाज़ली
हैं सारे जुर्म जब अपने हिसाब में लिखना
उमर अंसारी
खेल दोनों का चले तीन का दाना न पड़े
उमैर नजमी
ये मेरे साथी हैं प्यारे साथी मगर इन्हें भी नहीं गवारा
उमैर मंज़र
बना के वहम ओ गुमाँ की दुनिया हक़ीक़तों के सराब देखूँ
उमैर मंज़र
ग़ज़ल का सिलसिला था याद होगा
तुफ़ैल चतुर्वेदी
इक बहाना है तुझे याद किए जाने का
तुफ़ैल बिस्मिल
क़त्ल करना है नए ख़्वाब का सो डरता हूँ
त्रिपुरारि
ज़िंदगानी का कोई बाब समझ लो लड़की
त्रिपुरारि
आइने के रू-ब-रू इक आइना रखता हूँ मैं
तौसीफ ताबिश
छब्बीस जनवरी
तिलोकचंद महरूम
वो अव्वलीं दर्द की गवाही सजी हुई बज़्म-ए-ख़्वाब जैसे
तौसीफ़ तबस्सुम
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