धूल Poetry (page 68)
पहले तो हम छान आए ख़ाक सारे शहर की
अब्बास ताबिश
परों में शाम ढलती है
अब्बास ताबिश
पागल
अब्बास ताबिश
यूँ तो शीराज़ा-ए-जाँ कर के बहम उठते हैं
अब्बास ताबिश
ये किस के ख़ौफ़ का गलियों में ज़हर फैल गया
अब्बास ताबिश
वो कौन है जो पस-ए-चश्म-ए-तर नहीं आता
अब्बास ताबिश
शे'र लिखने का फ़ाएदा क्या है
अब्बास ताबिश
रम्ज़-गर भी गया रम्ज़-दाँ भी गया
अब्बास ताबिश
परिंदे पूछते हैं तुम ने क्या क़ुसूर किया
अब्बास ताबिश
नक़्श सारे ख़ाक के हैं सब हुनर मिट्टी का है
अब्बास ताबिश
इश्क़ की जोत जगाने में बड़ी देर लगी
अब्बास ताबिश
हर-चंद तिरी याद जुनूँ-ख़ेज़ बहुत है
अब्बास ताबिश
अब परिंदों की यहाँ नक़्ल-ए-मकानी कम है
अब्बास ताबिश
ज़मीन उन के लिए फूल खिलाती है
अब्बास अतहर
ख़ाक से थे ख़ाक से ही हो गए
आज़िम कोहली
वो क्या है तिरा जिस में जल्वा नहीं है
आसी ग़ाज़ीपुरी
तिरे कूचे का रहनुमा चाहता हूँ
आसी ग़ाज़ीपुरी
फिर मिज़ाज उस रिंद का क्यूँकर मिले
आसी ग़ाज़ीपुरी
कुछ कहूँ कहना जो मेरा कीजिए
आसी ग़ाज़ीपुरी
'आशुफ़्ता' अब उस शख़्स से क्या ख़ाक निबाहें
आशुफ़्ता चंगेज़ी
वापसी
आशुफ़्ता चंगेज़ी
रोने को बहुत रोए बहुत आह-ओ-फ़ुग़ाँ की
आशुफ़्ता चंगेज़ी
जिस की न कोई रात हो ऐसी सहर मिले
आशुफ़्ता चंगेज़ी
धूप के रथ पर हफ़्त अफ़्लाक
आशुफ़्ता चंगेज़ी
बोसीदा जिस्म-ओ-जाँ की क़बाएँ लिए हुए
आस मोहम्मद मोहसिन
उन के सितम भी कह नहीं सकते किसी से हम
आले रज़ा रज़ा
वो जिएँ क्या जिन्हें जीने का हुनर भी न मिला
आल-ए-अहमद सूरूर
शगुफ़्तगी-ए-दिल-ए-वीराँ में आज आ ही गई
आल-ए-अहमद सूरूर
ख़ुदा-परस्त मिले और न बुत-परस्त मिले
आल-ए-अहमद सूरूर
ख़याल जिन का हमें रोज़-ओ-शब सताता है
आल-ए-अहमद सूरूर
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