धूल Poetry (page 51)
आप-बीती ज़रा सुना ऐ दश्त
बलवान सिंह आज़र
मैं, एक और मैं
बलराज कोमल
गिर्या-ए-सगाँ
बलराज कोमल
समाअ'त के लिए इक इम्तिहाँ है
बकुल देव
हादसात अब के सफ़र में नए ढब से आए
बकुल देव
याँ ख़ाक का बिस्तर है गले में कफ़नी है
ज़फ़र
या मुझे अफ़सर-ए-शाहाना बनाया होता
ज़फ़र
नहीं इश्क़ में इस का तो रंज हमें कि क़रार ओ शकेब ज़रा न रहा
ज़फ़र
न दाइम ग़म है ने इशरत कभी यूँ है कभी वूँ है
ज़फ़र
मैं हूँ आसी कि पुर-ख़ता कुछ हूँ
ज़फ़र
होते होते चश्म से आज अश्क-बारी रह गई
ज़फ़र
हिज्र के हाथ से अब ख़ाक पड़े जीने में
ज़फ़र
हवा में फिरते हो क्या हिर्स और हवा के लिए
ज़फ़र
है दिल को जो याद आई फ़लक-ए-पीर किसी की
ज़फ़र
देखो इंसाँ ख़ाक का पुतला बना क्या चीज़ है
ज़फ़र
गौरय्यों ने जश्न मनाया मेरे आँगन बारिश का
बद्र-ए-आलम ख़लिश
मसअले ज़ेर-ए-नज़र कितने थे
अज़रा वहीद
आवाज़ गिरती है
अज़रा अब्बास
वतन
अज़मतुल्लाह ख़ाँ
खुलता नहीं कि हम में ख़िज़ाँ-दीदा कौन है
अज़्म बहज़ाद
जो बात शर्त-ए-विसाल ठहरी वही है अब वज्ह-ए-बद-गुमानी
अज़्म बहज़ाद
ये ख़ज़ाने का कोई साँप बना होता है
अज़लान शाह
क़ुबूल होती हुई बद-दुआ से डरते हैं
अज़लान शाह
यादों का जज़ीरा शब-ए-तन्हाई में
अज़ीज़ुर्रहमान शहीद फ़तेहपुरी
अज़ल-अबद
अज़ीज़ क़ैसी
आएँगे नज़र सुब्ह के आसार में हम लोग
अज़ीज़ नबील
हक़ारत से न देखो साकिनान-ए-ख़ाक की बस्ती
अज़ीज़ लखनवी
दिल नहीं जब तो ख़ाक है दुनिया
अज़ीज़ लखनवी
वो निगाहें क्या कहूँ क्यूँ कर रग-ए-जाँ हो गईं
अज़ीज़ लखनवी
मेरे रोने पे ये हँसी कैसी
अज़ीज़ लखनवी
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