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Collection: धूल Hindi Poetry | Best Hindi Shayari & Poems - Page 50 - Darsaal

धूल Poetry (page 50)

ये ख़ूब-रू न छुरी ने कटार रखते हैं

बयाँ अहसनुल्लाह ख़ान

या रब न हिन्द ही में ये माटी ख़राब हो

बयाँ अहसनुल्लाह ख़ान

तेरा सितम जो मुझ से गदा ने सहा सहा

बयाँ अहसनुल्लाह ख़ान

जा कहे कू-ए-यार में कोई

बयाँ अहसनुल्लाह ख़ान

जब से मिरे रक़ीब का रस्ता बदल गया

बशीर महताब

सोचा नहीं अच्छा बुरा देखा सुना कुछ भी नहीं

बशीर बद्र

शाम आँखों में आँख पानी में

बशीर बद्र

मिरी नज़र में ख़ाक तेरे आइने पे गर्द है

बशीर बद्र

इक परी के साथ मौजों पर टहलता रात को

बशीर बद्र

या मह-ओ-साल की दीवार गिरा दी जाए

बशीर अहमद बशीर

क़र्या क़र्या ख़ाक उड़ाई कूचा-गर्द फ़क़ीर हुए

बशीर अहमद बशीर

न सिकंदर है न दारा है न क़ैसर है न जम

मिर्ज़ा रज़ा बर्क़

रंग से पैरहन-ए-सादा हिनाई हो जाए

मिर्ज़ा रज़ा बर्क़

पर्दा उलट के उस ने जो चेहरा दिखा दिया

मिर्ज़ा रज़ा बर्क़

न रहे नामा ओ पैग़ाम के लाने वाले

मिर्ज़ा रज़ा बर्क़

लाख पर्दे से रुख़-ए-अनवर अयाँ हो जाएगा

मिर्ज़ा रज़ा बर्क़

गया शबाब न पैग़ाम-ए-वस्ल-ए-यार आया

मिर्ज़ा रज़ा बर्क़

देखी जो ज़ुल्फ़-ए-यार तबीअत सँभल गई

मिर्ज़ा रज़ा बर्क़

हम ज़र्रे हैं ख़ाक-ए-रहगुज़र के

बाक़ी सिद्दीक़ी

नर्गिस-ए-मस्त तिरी जाए जो तुल बरसर-ए-गुल

बक़ा उल्लाह 'बक़ा'

जब मेरे दिल जिगर की तिलिस्में बनाइयाँ

बक़ा उल्लाह 'बक़ा'

दिल ख़ूँ है ग़म से और जिगर यक-न-शुद दो-शुद

बक़ा उल्लाह 'बक़ा'

दिल ख़ूँ है ग़म से और जिगर यक न-शुद दो शुद

बक़ा उल्लाह 'बक़ा'

दस्त-ए-नासेह जो मिरे जेब को इस बार लगा

बक़ा उल्लाह 'बक़ा'

आहें अफ़्लाक में मिल जाती हैं

बक़ा उल्लाह 'बक़ा'

क्या ख़बर थी कि कभी बे-सर-ओ-सामाँ होंगे

बाक़र मेहदी

एक उलझन रात दिन पलती रही दिल में कि हम

बक़ा बलूच

उम्र भर कुछ ख़्वाब दिल पर दस्तकें देते रहे

बक़ा बलूच

किरदार ही से ज़ीनत-ए-अफ़्लाक हो गए

बनो ताहिरा सईद

क्यूँ छुपाते हो किधर जाना है

बलवान सिंह आज़र

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