धूल Poetry (page 47)
मुझ सा न दे ज़माने को परवरदिगार दिल
दाग़ देहलवी
मिलाते हो उसी को ख़ाक में जो दिल से मिलता है
दाग़ देहलवी
खुलता नहीं है राज़ हमारे बयान से
दाग़ देहलवी
जल्वे मिरी निगाह में कौन-ओ-मकाँ के हैं
दाग़ देहलवी
हुआ जब सामना उस ख़ूब-रू से
दाग़ देहलवी
ग़ज़ब किया तिरे वअ'दे पे ए'तिबार किया
दाग़ देहलवी
ग़म से कहीं नजात मिले चैन पाएँ हम
दाग़ देहलवी
डरते हैं चश्म ओ ज़ुल्फ़ ओ निगाह ओ अदा से हम
दाग़ देहलवी
भला हो पीर-ए-मुग़ाँ का इधर निगाह मिले
दाग़ देहलवी
हमारे सब्र का इक इम्तिहान बाक़ी है
चित्रांश खरे
तरकीब-ए-सर्फ़ी
चाैधरी मोहम्मद नईम
ज़िंदगी की यही कहानी है
चाँदनी पांडे
नई-देहली
चंद्रभान कैफ़ी देहल्वी
दिलकशी नाम को भी आलम-ए-इम्काँ में नहीं
चंद्रभान कैफ़ी देहल्वी
ज़बान-ए-हाल से ये लखनऊ की ख़ाक कहती है
चकबस्त ब्रिज नारायण
वतन की ख़ाक से मर कर भी हम को उन्स बाक़ी है
चकबस्त ब्रिज नारायण
इक सिलसिला हवस का है इंसाँ की ज़िंदगी
चकबस्त ब्रिज नारायण
रामायण का एक सीन
चकबस्त ब्रिज नारायण
मर्सिया गोपाल कृष्ण गोखले
चकबस्त ब्रिज नारायण
ख़ाक-ए-हिंद
चकबस्त ब्रिज नारायण
आसिफ़ुद्दौला का इमामबाड़ा लखनऊ
चकबस्त ब्रिज नारायण
न कोई दोस्त दुश्मन हो शरीक-ए-दर्द-ओ-ग़म मेरा
चकबस्त ब्रिज नारायण
कुछ ऐसा पास-ए-ग़ैरत उठ गया इस अहद-ए-पुर-फ़न में
चकबस्त ब्रिज नारायण
कभी था नाज़ ज़माने को अपने हिन्द पे भी
चकबस्त ब्रिज नारायण
हम सोचते हैं रात में तारों को देख कर
चकबस्त ब्रिज नारायण
दर्द-ए-दिल पास-ए-वफ़ा जज़्बा-ए-ईमाँ होना
चकबस्त ब्रिज नारायण
दर्द-ए-दिल पास-ए-वफ़ा जज़्बा-ए-ईमाँ होना
चकबस्त ब्रिज नारायण
दिल के ज़ख़्मों की चुभन दीदा-ए-तर से पूछो
बुशरा हाश्मी
जब राख से उट्ठेगा कभी इश्क़ का शोला
बुशरा एजाज़
दिल में है तलब और दुआ और तरह की
बुशरा एजाज़
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