धूल Poetry (page 25)
क्या हो गया कि बैठ गई ख़ाक भी मिरी
सालिम सलीम
जो एक दम में तमाम रूहों को ख़ाक कर दे
सालिम सलीम
भरे बाज़ार में बैठा हूँ लिए जिंस-ए-वजूद
सालिम सलीम
सुकूत-ए-अर्ज़-ओ-समा में ख़ूब इंतिशार देखूँ
सालिम सलीम
नए जहानों का इक इस्तिआरा कर के लाओ
सालिम सलीम
मिरे ठहराव को कुछ और भी वुसअत दी जाए
सालिम सलीम
ख़ुद अपनी ख़्वाहिशें ख़ाक-ए-बदन में बोने को
सालिम सलीम
जिस्म की सतह पे तूफ़ान किया जाएगा
सालिम सलीम
एक हंगामा बपा है अर्सा-ए-अफ़्लाक पर
सालिम सलीम
दालान में कभी कभी छत पर खड़ा हूँ मैं
सालिम सलीम
कौन कहता है कि यूँही राज़दार उस ने किया
सलीम सिद्दीक़ी
किसी रुत में जब मुस्कुराता है तू
सलीम शहज़ाद
ज़ुल्मत है तो फिर शो'ला-ए-शब-गीर निकालो
सलीम शाहिद
ज़मीं को सज्दा किया ख़ूँ से बा-वज़ू हो कर
सलीम शाहिद
रौशन सुकूत सब उसी शो'ला-बयाँ से है
सलीम शाहिद
क्या मेरा इख़्तियार ज़मान-ओ-मकान पर
सलीम शाहिद
अच्छा था कोई ख़्वाब नज़र में न पालते
सलीम सरफ़राज़
वुसअत है वही तंगी-अफ़्लाक वही है
सलीम कौसर
क़ुर्बतें होते हुए भी फ़ासलों में क़ैद हैं
सलीम कौसर
न कोई नाम ओ नसब है न गोश्वारा मिरा
सलीम कौसर
कोई सच्चे ख़्वाब दिखाता है पर जाने कौन दिखाता है
सलीम कौसर
कहानी लिखते हुए दास्ताँ सुनाते हुए
सलीम कौसर
बस लौट आना
सलीम फ़िगार
आख़िरी पड़ाव
सलीम फ़िगार
शाम ढलते ही तिरे ध्यान में आ जाता हूँ
सलीम फ़िगार
वो तीरगी-ए-शब है कि घर लौट गए हैं
सलीम फ़राज़
हर-चंद मिरा शौक़-ए-सफ़र यूँ न रहेगा
सलीम फ़राज़
फ़स्ल-ए-जुनूँ में दामन-ओ-दिल चाक भी नहीं
सलीम फ़राज़
अच्छा था कोई ख़्वाब नज़र में न पालते
सलीम फ़राज़
ख़ुद अपनी लौ में था मेहराब-ए-जाँ में जलता था
सलीम अहमद
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