धूल Poetry (page 18)
दरख़्तों पर कोई पत्ता नहीं था
शहज़ाद अहमद
ज़मीं अपने लहू से आश्ना होने ही वाली है
शहज़ाद अहमद
यूँ ख़ाक की मानिंद न राहों पे बिखर जा
शहज़ाद अहमद
सूरज की किरन देख के बेज़ार हुए हो
शहज़ाद अहमद
रुख़्सत हुआ तो आँख मिला कर नहीं गया
शहज़ाद अहमद
रात की नींदें तो पहले ही उड़ा कर ले गया
शहज़ाद अहमद
न बस्तियों को अज़ीज़ रक्खें न हम बयाबाँ से लौ लगाएँ
शहज़ाद अहमद
कितनी बे-नूर थी दिन भर नज़र-ए-परवाना
शहज़ाद अहमद
ख़िज़ाँ जब आए तो आँखों में ख़ाक डालता हूँ
शहज़ाद अहमद
जो दिल में खटकती है कभी कह भी सकोगे
शहज़ाद अहमद
जल भी चुके परवाने हो भी चुकी रुस्वाई
शहज़ाद अहमद
जब उस की ज़ुल्फ़ में पहला सफ़ेद बाल आया
शहज़ाद अहमद
इसी बाइस ज़माना हो गया है उस को घर बैठे
शहज़ाद अहमद
इश्क़ वहशी है जहाँ देखेगा
शहज़ाद अहमद
इबलीस भी रख लेते हैं जब नाम फ़रिश्ते
शहज़ाद अहमद
हम लोगों को अपने दिल के राज़ बताते रहते हैं
शहज़ाद अहमद
हिज्र की रात मिरी जाँ पे बनी हो जैसे
शहज़ाद अहमद
फ़स्ल-ए-गुल ख़ाक हुई जब तो सदा दी तू ने
शहज़ाद अहमद
दिल-ए-फ़सुर्दा उसे क्यूँ गले लगा न लिया
शहज़ाद अहमद
दरिया कभी इक हाल में बहता न रहेगा
शहज़ाद अहमद
भटकती हैं ज़माने में हवाएँ
शहज़ाद अहमद
बाग़-ए-बहिश्त के मकीं कहते हैं मर्हबा मुझे
शहज़ाद अहमद
बाग़ का बाग़ उजड़ गया कोई कहो पुकार कर
शहज़ाद अहमद
अब न वो शोर न वो शोर मचाने वाले
शहज़ाद अहमद
लौह-ए-अय्याम
शहराम सर्मदी
वो एक लम्हा-ए-रफ़्ता भी क्या बुला लाया
शहराम सर्मदी
आदाब ज़िंदगी से बहुत दूर हो गया
शहूद आलम आफ़ाक़ी
किसी से हाथ किसी से नज़र मिलाते हुए
शहनाज़ नूर
मिरी तरह से कहीं ख़ाक छानता होगा
शहनाज़ मुज़म्मिल
मोहब्बत से तिरी यादें जगा कर सो रहा हूँ
शहनवाज़ ज़ैदी
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