धूल Poetry (page 17)
मुबारक वो साअत
शकेब जलाली
जिहत की तलाश
शकेब जलाली
वहाँ की रौशनियों ने भी ज़ुल्म ढाए बहुत
शकेब जलाली
तू ने क्या क्या न ऐ ज़िंदगी दश्त ओ दर में फिराया मुझे
शकेब जलाली
मुरझा के काली झील में गिरते हुए भी देख
शकेब जलाली
मिरे ख़ुलूस की शिद्दत से कोई डर भी गया
शकेब जलाली
मरीज़-ए-ग़म के सहारो कोई तो बात करो
शकेब जलाली
क्या कहिए कि अब उस की सदा तक नहीं आती
शकेब जलाली
हम-जिंस अगर मिले न कोई आसमान पर
शकेब जलाली
ग़म-ए-दिल हीता-ए-तहरीर में आता ही नहीं
शकेब जलाली
दाइमी सुख
शाइस्ता मुफ़्ती
ख़ाक से उठना ख़ाक में सोना ख़ाक को बंदा भूल गया
शाइस्ता मुफ़्ती
अजनबी शहर में उल्फ़त की नज़र को तरसे
शाइस्ता मुफ़्ती
कभू तू रो तो उस को ख़ाक ऊपर जा के ऐ लैला
शैख़ ज़हूरूद्दीन हातिम
अभी मस्जिद-नशीन-ए-तारुम-ए-अफ़्लाक हो जावे
शैख़ ज़हूरूद्दीन हातिम
रोना वही जो ख़ौफ़-ए-इलाही से रोइए
शैख़ ज़हूरूद्दीन हातिम
मिला दिए ख़ाक में ख़ुदा ने पलक के लगते ही शाह लाखों
शैख़ ज़हूरूद्दीन हातिम
कोई देता नहीं है दाद बे-दाद
शैख़ ज़हूरूद्दीन हातिम
कहीं वो सूरत-ए-ख़ूबाँ हुआ है
शैख़ ज़हूरूद्दीन हातिम
एहसान तिरा दिल मिरा क्या याद करेगा
शैख़ ज़हूरूद्दीन हातिम
अब की चमन में गुल का ने नाम ओ ने निशाँ है
शैख़ ज़हूरूद्दीन हातिम
कफ़न-चोर
शहज़ाद नय्यर
उट्ठी हैं मेरी ख़ाक से आफ़ात सब की सब
शहज़ाद अहमद
तमाम उम्र हवा फांकते हुए गुज़री
शहज़ाद अहमद
रहने दिया न उस ने किसी काम का मुझे
शहज़ाद अहमद
न सही जिस्म मगर ख़ाक तो उड़ती फिरती
शहज़ाद अहमद
मंज़िल पे जा के ख़ाक उड़ाने से फ़ाएदा
शहज़ाद अहमद
इस राह से गुज़रे थे कभी अहल-ए-नज़र भी
शहज़ाद अहमद
हम दो क़दम भी चल न सके ख़ाक-ए-पा हुए
शहज़ाद अहमद
अपने लिए तो ख़ाक की ख़ुश्बू है ज़िंदगी
शहज़ाद अहमद
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