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Collection: धूल Hindi Poetry | Best Hindi Shayari & Poems - Page 13 - Darsaal

धूल Poetry (page 13)

इस ज़मीन ओ आसमाँ पर ख़ाक डाल

सुहैल अख़्तर

पेड़ ऊँचा है मगर ज़ेर-ए-ज़मीं कितना है

सुहैल अहमद ज़ैदी

इम्कान खुले दर का हर आन बहुत रक्खा

सुहैल अहमद ज़ैदी

गए मौसमों को भुला देंगे हम

सुहैल अहमद ज़ैदी

जिस दिन से मिरी तुम से शनासाई हुई है

सिया सचदेव

वही सितारा जो बुझ गया हम-सफ़र था मेरा

सिराज मुनीर

दिल से अब तो नक़्श-ए-याद-ए-रफ़्तगाँ भी मिट गया

सिराज मुनीर

ज़रा देखो ये सरकश ज़र्रा-ए-ख़ाक

सिराज लखनवी

यूँ सुबुक-दोश हूँ जीने का भी इल्ज़ाम नहीं

सिराज लखनवी

मुझे अब हवा-ए-चमन नहीं कि क़फ़स में गूना क़रार है

सिराज लखनवी

गुनाहगार हूँ ऐसा रह-ए-नजात में हूँ

सिराज लखनवी

अजब सूरत से दिल घबरा रहा है

सिराज लखनवी

किया ख़ाक आतिश-ए-इश्क़ ने दिल-ए-बे-नवा-ए-'सिराज' कूँ

सिराज औरंगाबादी

तिरी निगाह की अनियाँ जिगर में सलियाँ हैं

सिराज औरंगाबादी

ख़बर-ए-तहय्युर-ए-इश्क़ सुन न जुनूँ रहा न परी रही

सिराज औरंगाबादी

दिलदार की कशिश ने ऐंचा है मन हमारा

सिराज औरंगाबादी

कहाँ तलक तिरी यादों से तख़लिया कर लें

सिरज़ अालम ज़ख़मी

हज़ार नक़्स हैं मुझ में मिरे कमाल को देख

सिकंदर अली वज्द

बयाबानों पे ज़िंदानों पे वीरानों पे क्या गुज़री

सिकंदर अली वज्द

सफ़र की धूप ने चेहरा उजाल रक्खा था

सिदरा सहर इमरान

शरीक-ए-ग़म कोई कब मो'तबर निकलता है

सिद्दीक़ मुजीबी

प्यासा जो मेरे ख़ूँ का हुआ था सो ख़्वाब था

सिद्दीक़ मुजीबी

मैं भी आवारा हूँ तेरे सात आवारा हवा

सिद्दीक़ मुजीबी

दिल ही गिर्दाब-ए-तमन्ना है यहीं डूबते हैं

सिद्दीक़ मुजीबी

अपने सीने को मिरे ज़ख़्मों से भरने वाली

सिद्दीक़ मुजीबी

आग देखूँ कभी जलता हुआ बिस्तर देखूँ

सिद्दीक़ मुजीबी

अजनबी राह-गुज़र

सिद्दीक़ कलीम

ले उड़े ख़ाक भी सहरा के परस्तार मिरी

सिद्दीक़ अफ़ग़ानी

हवा-ए-इश्क़ में शामिल हवस की लू ही रही

सिद्दीक़ अफ़ग़ानी

हर चंद कि प्यारा था मैं सूरज की नज़र का

सिद्दीक़ अफ़ग़ानी

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