व्यवसाय Poetry (page 3)
कैफ़-ए-सुरूर-ओ-सोज़ के क़ाबिल नहीं रहा
एस ए मेहदी
वो अपनी आन में गुम है मैं अपनी आन में गुम
रिज़वानूरर्ज़ा रिज़वान
ये जो मुझ पर निखार है साईं
रहमान फ़ारिस
तमाम रात तिरा इंतिज़ार होता रहा
रज़ी रज़ीउद्दीन
कोई भी ज़ोर ख़रीदार पर नहीं चलता
रऊफ़ ख़ैर
कहाँ किसी की हिमायत में मारा जाऊँगा
राणा सईद दोशी
कुछ इस अदा से सफ़ीरान-ए-नौ-बहार चले
रम्ज़ अज़ीमाबादी
संग-दिल हूँ इस क़दर आँखें भिगो सकता नहीं
इक़बाल साजिद
अभी मिरा आफ़्ताब उफ़ुक़ की हुदूद से आश्ना नहीं है
इक़बाल कौसर
सच
इंजिला हमेश
दोस्त जब ज़ी-वक़ार होता है
इन्दिरा वर्मा
उस का बदन भी चाहिए और दिल भी चाहिए
इमरान-उल-हक़ चौहान
गुल-ए-सुख़न से अँधेरों में ताब-कारी कर
इदरीस बाबर
ये कारोबार भी कब रास आया
इब्न-ए-मुफ़्ती
ग़लत-फ़हमी की सरहद पार कर के
इब्न-ए-मुफ़्ती
अर्श के तारे तोड़ के लाएँ काविश लोग हज़ार करें
इब्न-ए-इंशा
वो एक रात की गर्दिश में इतना हार गया
हसीब सोज़
अहल-ए-हवस के हाथों न ये कारोबार हो
हसन नज्मी सिकन्दरपुरी
हर-चंद दूर दूर वो हुस्न-ओ-जमाल है
हामिद इलाहाबादी
उस के करम से है न तुम्हारी नज़र से है
हमीद अलमास
देखा न कारोबार-ए-मोहब्बत कभी 'हफ़ीज़'
हफ़ीज़ जालंधरी
आ ही गया वो मुझ को लहद में उतारने
हफ़ीज़ जालंधरी
तेज़ चलो
हबीब जालिब
गुलों का दौर है बुलबुल मज़े बहार में लूट
हबीब मूसवी
रह गई लुट कर बहार-ए-ज़िंदगी
गोपाल कृष्णा शफ़क़
किस तरह वाक़िफ़ हों हाल-ए-आशिक़-ए-जाँ-बाज़ से
ग़ुलाम भीक नैरंग
बेवफ़ा के वा'दे पर ए'तिबार करते हैं
ग़नी एजाज़
बुलबुल के कारोबार पे हैं ख़ंदा-हा-ए-गुल
ग़ालिब
यक-ज़र्रा-ए-ज़मीं नहीं बे-कार बाग़ का
ग़ालिब
वो फ़िराक़ और वो विसाल कहाँ
ग़ालिब
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