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Collection: काम Hindi Poetry | Best Hindi Shayari & Poems - Page 57 - Darsaal

काम Poetry (page 57)

हवा-ए-मौसम-ए-गुल से लहू लहू तुम थे

अब्बास ताबिश

हँसने नहीं देता कभी रोने नहीं देता

अब्बास ताबिश

बहुत बे-कार मौसम है मगर कुछ काम करना है

अब्बास ताबिश

नज़्अ' की सख़्ती बढ़ी उन को पशेमाँ देख कर

अब्बास अली ख़ान बेखुद

किसी से इश्क़ करना और इस को बा-ख़बर करना

अब्बास अली ख़ान बेखुद

मैं जी भर के रोया तो आराम आया

आज़िम कोहली

'आज़िम' तेरी बर्बादी में सब ने मिल-जुल कर काम किया

आज़िम कोहली

नीला अम्बर चाँद सितारे बच्चों की जागीरें हैं

आज़िम कोहली

जो होगा सब ठीक ही होगा होने दो जो होना है

आज़िम कोहली

एहसास के सूखे पत्ते भी अरमानों की चिंगारी भी

आज़िम कोहली

क्या है ऊँचाई मोहब्बत की बताते जाओ

अातिश इंदौरी

तुम्हें ज़ेबा नहीं हरगिज़ सिले की आरज़ू रखना

अातिश बहावलपुरी

सर झुकाए सर-ए-महशर जो गुनहगार आए

आसी रामनगरी

असीरान-ए-क़फ़स ऐसा तो हो तर्ज़-ए-फ़ुग़ाँ अपना

आसी रामनगरी

ख़याल जिन का हमें रोज़-ओ-शब सताता है

आल-ए-अहमद सूरूर

जब्र-ए-हालात का तो नाम लिया है तुम ने

आल-ए-अहमद सूरूर

हमारे हाथ में जब कोई जाम आया है

आल-ए-अहमद सूरूर

रिंद-मशरब हैं किसी से हमें कुछ काम नहीं

आग़ा अकबराबादी

शिद्दत-ए-ज़ात ने ये हाल बनाया अपना

आग़ा अकबराबादी

मुद्दत के बा'द इस ने लिखा मेरे नाम ख़त

आग़ा अकबराबादी

मज़ा है इम्तिहाँ का आज़मा ले जिस का जी चाहे

आग़ा अकबराबादी

मद्दाह हूँ मैं दिल से मोहम्मद की आल का

आग़ा अकबराबादी

क्या बनाए साने-ए-क़ुदरत ने प्यारे हाथ पाँव

आग़ा अकबराबादी

वहाँ शायद कोई बैठा हुआ है

आदिल रज़ा मंसूरी

दिन के सीने पे शाम का पत्थर

आदिल रज़ा मंसूरी

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