काम Poetry (page 47)

जल्वे दिखाए यार ने अपनी हरीम-ए-नाज़ में

अनवर सहारनपुरी

तलख़ाबा-ए-ग़म ख़ंदा-जबीं हो के पिए जा

अनवर साबरी

मुद्दतों से कोई पैग़ाम नहीं आता है

अनवर साबरी

हर साँस में ख़ुद अपने न होने का गुमाँ था

अनवर साबरी

मैं ख़ुश हूँ अगर गुलशन के लिए कुछ मेरा लहू काम आ जाए

अनवर मिर्ज़ापुरी

इस वास्ते दामन चाक किया शायद ये जुनूँ काम आ जाए

अनवर मिर्ज़ापुरी

तय हो गया है मसअला जब इंतिसाब का

अनवर मसूद

बजट मैं ने देखे हैं सारे तिरे

अनवर मसूद

ज़माना उफ़ ये कैसा हो रहा है

अनवर जमाल अनवर

अब नाम नहीं काम का क़ाएल है ज़माना

अनवर जलालपुरी

शादाब-ओ-शगुफ़्ता कोई गुलशन न मिलेगा

अनवर जलालपुरी

नींद का काम गरचे आना है

अनवर देहलवी

है भी और फिर नज़र नहीं आती

अनवर देहलवी

देखा जो मर्ग तो मरना ज़ियाँ न था

अनवर देहलवी

खिला है फूल बहुत रोज़ में मुक़द्दर का

अनवर अंजुम

तख़्लीक़ की साअतों में

अंजुम सलीमी

सख़्त मुश्किल में किया हिज्र ने आसान मुझे

अंजुम सलीमी

दिन ले के जाऊँ साथ उसे शाम कर के आऊँ

अंजुम सलीमी

दर्द-ए-विरासत पा लेने से नाम नहीं चल सकता

अंजुम सलीमी

हम से बात में पेच न डाल

अंजुम रूमानी

जाने किस की आहट का इंतिज़ार करता है

अंजुम लुधियानवी

हज़ारों साल चलने कि सज़ा है

अंजुम लुधियानवी

ख़ुश-आमदीद

अंजुम ख़लीक़

मिरे जुनूँ को हवस में शुमार कर लेगा

अंजुम ख़लीक़

बड़ी फ़र्ज़-आश्ना है सबा करे ख़ूब काम हिसाब का

अंजुम इरफ़ानी

सुन कहा मान न मानेगा तो पछताएगा

अंजुम फ़ौक़ी बदायूनी

वो जिस के नाम में लज़्ज़त बहुत है

अंजुम बाराबंकवी

हम सब को बताते रहते हैं ये बात पुरानी काम की है

अंजुम बाराबंकवी

अपनी जेब थी ख़ाली ख़ाली करते क्या

अंजुम अज़ीमाबादी

तिरे गेसुओं के साए में जो एक पल रहा हूँ

अनीस अहमद अनीस

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