काम Poetry (page 45)
माँ
आसिफ़ रज़ा
हरगिज़ मिरा वहशी न हुआ राम किसी का
अशरफ़ अली फ़ुग़ाँ
डरता हूँ मोहब्बत में मिरा नाम न होवे
अशरफ़ अली फ़ुग़ाँ
अब इस से पहले कि दुनिया से मैं गुज़र जाऊँ
अशोक साहिल
रघुपति राघव राजा राम
अशोक लाल
आ जाओ अब तो ज़ुल्फ़ परेशाँ किए हुए
अशहद बिलाल इब्न-ए-चमन
ज़र्द पत्तों पे मिरा नाम लिखा है उस ने
अशफ़ाक़ अंजुम
कहा किस ने मुसलसल काम करने के लिए है
अशफ़ाक़ हुसैन
हो गई अपनों की ज़ाहिर दुश्मनी अच्छा हुआ
असग़र वेलोरी
नहीं दैर ओ हरम से काम हम उल्फ़त के बंदे हैं
असग़र गोंडवी
बाग़ में फूल खिले मौसम-ए-सौदा आया
असीर लखनवी
वो जो नहीं हैं बज़्म में बज़्म की शान भी नहीं
असर रामपुरी
हम-साई
असद जाफ़री
दो-जहाँ से मावरा हो जाएगा
असद भोपाली
वो हाथ मार पलट कर जो कर दे काम तमाम
आरज़ू लखनवी
वफ़ा तुम से करेंगे दुख सहेंगे नाज़ उठाएँगे
आरज़ू लखनवी
किस काम की ऐसी सच्चाई जो तोड़ दे उम्मीदें दिल की
आरज़ू लखनवी
वो सर-ए-बाम कब नहीं आता
आरज़ू लखनवी
तुम्हें क्या काम नालों से तुम्हें क्या काम आहों से
आरज़ू लखनवी
तड़पते दिल को न ले इज़्तिराब लेता जा
आरज़ू लखनवी
क़ुर्बत बढ़ा बढ़ा कर बे-ख़ुद बना रहे हैं
आरज़ू लखनवी
न कोई जल्वती न कोई ख़ल्वती न कोई ख़ास था न कोई आम था
आरज़ू लखनवी
मीर-ए-महफ़िल न हुए गर्मी-ए-महफ़िल तो हुए
आरज़ू लखनवी
मासूम नज़र का भोला-पन ललचा के लुभाना क्या जाने
आरज़ू लखनवी
ख़ाली बैठे क्यूँ दिन काटें आओ रे जी इक काम करें
आरज़ू लखनवी
जो बुत है यहाँ अपनी जा एक ही है
आरज़ू लखनवी
जितना था सरगर्म-ए-कार उतना ही दिल नाकाम था
आरज़ू लखनवी
दिल दे रहा था जो उसे बे-दिल बना दिया
आरज़ू लखनवी
देखें महशर में उन से क्या ठहरे
आरज़ू लखनवी
आँख से दिल में आने वाला
आरज़ू लखनवी
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