काम Poetry (page 43)

फ़ीमेल बुल-फ़ाइटर

अज़रा अब्बास

वतन

अज़मतुल्लाह ख़ाँ

कितने मौसम सरगर्दां थे मुझ से हाथ मिलाने में

अज़्म बहज़ाद

न जाने कौन सी मंज़िल पे इश्क़ आ पहुँचा

अज़ीज़ुर्रहमान शहीद फ़तेहपुरी

कमाल ये है कि दुनिया को कुछ पता न लगे

अज़ीज़ुर्रहमान शहीद फ़तेहपुरी

करते रहे तआ'क़ुब-ए-अय्याम उम्र-भर

अज़ीज़ तमन्नाई

रफ़्तगाँ

अज़ीज़ क़ैसी

आईने से

अज़ीज़ क़ैसी

कर चुके बर्बाद दिल को फ़िक्र क्या अंजाम की

अज़ीज़ लखनवी

काम दुनिया में बहुत करना है

अज़ीज़ लखनवी

चश्म-ए-साक़ी का तसव्वुर बज़्म में काम आ गया

अज़ीज़ लखनवी

चारागर चुप हैं क्यूँ इलाज करें

अज़ीज़ लखनवी

मिरी आँखें गवाह-ए-तल'अत-ए-आतिश हुईं जल कर

अज़ीज़ हामिद मदनी

ऐ शहर-ए-ख़िरद की ताज़ा हवा वहशत का कोई इनआम चले

अज़ीज़ हामिद मदनी

आज मुक़ाबला है सख़्त मीर-ए-सिपाह के लिए

अज़ीज़ हामिद मदनी

न ये क़ानून काम आया था राँझे के ज़रा सा भी

अज़ीज़ फ़ैसल

ये क्या कि रंग हाथों से अपने छुड़ाएँ हम

अज़हर इनायती

अभी बिछड़ा है वो कुछ रोज़ तो याद आएगा

अज़हर इनायती

कोई भी शक्ल मिरे दिल में उतर सकती है

अज़हर फ़राग़

जाते हुए नहीं रहा फिर भी हमारे ध्यान में

अज़हर फ़राग़

हमें रोको नहीं हम ने बहुत से काम करने हैं

अज़हर अदीब

रौशनी हस्ब-ए-ज़रूरत भी नहीं माँगते हम

अज़हर अदीब

जब तिरे ख़्वाब से बेदार हुआ करते थे

अज़हर अब्बास

लाई न सबा बू-ए-चमन अब के बरस भी

अज़ीम मुर्तज़ा

फिर इस के बा'द का कोई न हो गुज़र मुझ में

आज़ाद गुलाटी

कैसा मंज़र गुज़रने वाला था

औरंगज़ेब

आख़िर बिगड़ गए मिरे सब काम होने तक

औरंगज़ेब

न जिस का कोई सहारा हो वो किधर जाए

औलाद अली रिज़वी

जहाँ निफ़ाक़ के शो'ले मिलें बुझा के चलो

औलाद अली रिज़वी

मिरे सुपुर्द कहाँ वो ख़ज़ाना करता था

अतीक़ुल्लाह

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