काम Poetry (page 42)

पूछते हैं वो इश्क़ का मतलब

बशीरुद्दीन अहमद देहलवी

कौन कहता है नसीम-ए-सहरी आती है

बशीरुद्दीन अहमद देहलवी

है दुनिया में ज़बाँ मेरी अगर बंद

बशीरुद्दीन अहमद देहलवी

जब सहर चुप हो हँसा लो हम को

बशीर बद्र

है अजीब शहर की ज़िंदगी न सफ़र रहा न क़याम है

बशीर बद्र

फ़लक से चाँद सितारों से जाम लेना है

बशीर बद्र

दिल में इक तस्वीर छुपी थी आन बसी है आँखों में

बशीर बद्र

हुई मुद्दतें ऐ दिल-ए-हज़ीं न पयाम है न सलाम है

बशीरुद्दीन राज़

अच्छे कभी बुरे हैं हालात आदमी के

बशीर मुंज़िर

दौलत नहीं काम आती जो तक़दीर बुरी हो

मिर्ज़ा रज़ा बर्क़

किस तरह मिलें कोई बहाना नहीं मिलता

मिर्ज़ा रज़ा बर्क़

उदास बाम है दर काटने को आता है

बाक़ी अहमदपुरी

मुझ से बिछड़ के वो भी परेशान था बहुत

बाक़ी अहमदपुरी

रुश्द-ए-बातिन की तलब है तो कर ऐ शैख़ वो काम

बक़ा उल्लाह 'बक़ा'

सीखा जो क़लम से न-ए-ख़ाली का बजाना

बक़ा उल्लाह 'बक़ा'

रखता है यूँ वो ज़ुल्फ़-ए-सियह-फ़ाम दोश पर

बक़ा उल्लाह 'बक़ा'

मुझे तो इश्क़ में अब ऐश-ओ-ग़म बराबर है

बक़ा उल्लाह 'बक़ा'

सुबुक-सरी में भी अंदेशा-ए-हवा रखना

बाक़र नक़वी

खेत से बच कर गुज़रे बस्ती को वीरानी दे

बाक़र नक़वी

सादा काग़ज़ पे कोई नाम कभी लिख लेना!

बाक़र मेहदी

शाने की हर ज़बाँ से सुने कोई लाफ़-ए-ज़ुल्फ़

ज़फ़र

पान की सुर्ख़ी नहीं लब पर बुत-ए-ख़ूँ-ख़्वार के

ज़फ़र

न दो दुश्नाम हम को इतनी बद-ख़़ूई से क्या हासिल

ज़फ़र

जिगर के टुकड़े हुए जल के दिल कबाब हुआ

ज़फ़र

जब कि पहलू में हमारे बुत-ए-ख़ुद-काम न हो

ज़फ़र

हम ने तिरी ख़ातिर से दिल-ए-ज़ार भी छोड़ा

ज़फ़र

दिल ने हम से अजब ही काम लिया

बाबर रहमान शाह

तुम को मैं जब सलाम करता हूँ

बाबर रहमान शाह

दिल ने हम से अजब ही काम लिया

बाबर रहमान शाह

टूटी हुई रस्सी

अज़रा अब्बास

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