काम Poetry (page 41)

कब तक गर्दिश में रहना है कुछ तो बता अय्याम मुझे

भारत भूषण पन्त

अब आप कोई काम सिखा दीजिए हम को

बेख़ुद देहलवी

वो देखते जाते हैं कनखियों से इधर भी

बेख़ुद देहलवी

उठे तिरी महफ़िल से तो किस काम के उठ्ठे

बेख़ुद देहलवी

तेशे से कोई काम न फ़रहाद से हुआ

बेख़ुद देहलवी

लुत्फ़ से मतलब न कुछ मेरे सताने से ग़रज़

बेख़ुद देहलवी

लड़ाएँ आँख वो तिरछी नज़र का वार रहने दें

बेख़ुद देहलवी

झूट सच आप तो इल्ज़ाम दिए जाते हैं

बेख़ुद देहलवी

हो के मजबूर आह करता हूँ

बेख़ुद देहलवी

हिजाब दूर तुम्हारा शबाब कर देगा

बेख़ुद देहलवी

हैं निकहत-ए-गुल बाग़ में ऐ बाद-ए-सबा हम

बेख़ुद देहलवी

बेताब रहें हिज्र में कुछ दिल तो नहीं हम

बेख़ुद देहलवी

कभी हया उन्हें आई कभी ग़ुरूर आया

बेखुद बदायुनी

कभी हया उन्हें आई कभी ग़ुरूर आया

बेखुद बदायुनी

रहीन-ए-आस रही है न महव-ए-यास रही

बेकल उत्साही

मसरूर भी हूँ ख़ुश भी हूँ लेकिन ख़ुशी नहीं

बहज़ाद लखनवी

होना ही क्या ज़रूर थे ये दो-जहाँ हैं क्यूँ

बहज़ाद लखनवी

न तो अपने घर में क़रार है न तिरी गली में क़याम है

बेदम शाह वारसी

न कुनिश्त ओ कलीसा से काम हमें दर-ए-दैर न बैत-ए-हरम से ग़रज़

बेदम शाह वारसी

खींची है तसव्वुर में तस्वीर-ए-हम-आग़ोशी

बेदम शाह वारसी

हक़ पसंदों से जहाँ बर-सर-ए-पैकार सही

बेबाक भोजपुरी

फ़स्ल-ए-बहार जाने ये क्या गुल कतर गई

बेबाक भोजपुरी

बख़्त क्या जाने भला या कि बुरा होता है

बेबाक भोजपुरी

नहीं ये आदमी का काम वाइ'ज़

बयान मेरठी

जा कहे कू-ए-यार में कोई

बयाँ अहसनुल्लाह ख़ान

इश्क़-ए-सितम-परस्त क्या हुस्न-ए-सितम-शिआ'र क्या

बासित भोपाली

कितना काम करेंगे

बासिर सुल्तान काज़मी

कर लिया दिन में काम आठ से पाँच

बासिर सुल्तान काज़मी

होते हैं जो सब के वो किसी के नहीं होते

बासिर सुल्तान काज़मी

हज़ार कहता रहा मैं कि यार एक मिनट

बासिर सुल्तान काज़मी

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