काम Poetry (page 40)
पयामी कामयाब आए न आए
दाग़ देहलवी
मुमकिन नहीं कि तेरी मोहब्बत की बू न हो
दाग़ देहलवी
खुलता नहीं है राज़ हमारे बयान से
दाग़ देहलवी
ख़ातिर से या लिहाज़ से मैं मान तो गया
दाग़ देहलवी
जो हो सकता है उस से वो किसी से हो नहीं सकता
दाग़ देहलवी
जब वो बुत हम-कलाम होता है
दाग़ देहलवी
इस क़दर नाज़ है क्यूँ आप को यकताई का
दाग़ देहलवी
इस नहीं का कोई इलाज नहीं
दाग़ देहलवी
होश आते ही हसीनों को क़यामत आई
दाग़ देहलवी
हाथ निकले अपने दोनों काम के
दाग़ देहलवी
फ़लक देता है जिन को ऐश उन को ग़म भी होते हैं
दाग़ देहलवी
दिल-ए-नाकाम के हैं काम ख़राब
दाग़ देहलवी
अच्छी सूरत पे ग़ज़ब टूट के आना दिल का
दाग़ देहलवी
यूँही जलाए चलो दोस्तो भरम के चराग़
डी. राज कँवल
खुलती है चाँदनी जहाँ वो कोई बाम और है
डी. राज कँवल
बी.टी-नामा
कर्नल मोहम्मद ख़ान
हर अदा मश्कूक तेरी मुश्तबा हर बात है
चूँचाल सियालकोटी
फ़ज़ा-ए-ना-उमीदी में उमीद-अफ़ज़ा पयाम आया
चरख़ चिन्योटी
कैसा वो मौसम था ये तो समझ न पाए हम
चंद्र प्रकाश शाद
कभी हवा ने कभी उड़ते पत्थरों ने किया
चंद्र प्रकाश शाद
जहाँ रंग-ओ-बू है और मैं हूँ
चंद्रभान कैफ़ी देहल्वी
हर आरज़ू में रंग है बाग़-ओ-बहार का
चंद्रभान कैफ़ी देहल्वी
रामायण का एक सीन
चकबस्त ब्रिज नारायण
नए झगड़े निराली काविशें ईजाद करते हैं
चकबस्त ब्रिज नारायण
ब-ज़ाहिर तुझ से मिलने का कोई इम्काँ नहीं है
बुशरा फर्रुख
मेरे दिल को भी पड़ा रहने दो
बिस्मिल सईदी
आज़ार-ओ-जफ़ा-ए-पैहम से उल्फ़त में जिन्हें आराम नहीं
बिस्मिल इलाहाबादी
ऐसा हुआ कि घर से न निकला तमाम दिन
बिमल कृष्ण अश्क
ऐसे में रोज़ रोज़ कोई ढूँडता मुझे
बिमल कृष्ण अश्क
फिर मुझे लिखना जो वस्फ़-ए-रू-ए-जानाँ हो गया
भारतेंदु हरिश्चंद्र
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