काम Poetry (page 37)
लुत्फ़ ओ करम के पुतले हो अब क़हर ओ सितम का नाम नहीं
फ़ानी बदायुनी
क्या कहिए कि बेदाद है तेरी बेदाद
फ़ानी बदायुनी
कुछ बस ही न था वर्ना ये इल्ज़ाम न लेते
फ़ानी बदायुनी
इब्तिदा-ए-इश्क़ है लुत्फ़-ए-शबाब आने को है
फ़ानी बदायुनी
गुज़र गया इंतिज़ार हद से ये वादा-ए-ना-तमाम कब तक
फ़ानी बदायुनी
बे-अजल काम न अपना किसी उनवाँ निकला
फ़ानी बदायुनी
क्या भूल गए हैं वो मुझे पूछना क़ासिद
फ़ना बुलंदशहरी
मेरे रश्क-ए-क़मर तू ने पहली नज़र जब नज़र से मिलाई मज़ा आ गया
फ़ना बुलंदशहरी
मिरे दाग़-ए-दिल वो चराग़ हैं नहीं निस्बतें जिन्हें शाम से
फ़ना बुलंदशहरी
माइल-ब-करम मुझ पर हो जाएँ तो अच्छा हो
फ़ना बुलंदशहरी
जब तक मिरे होंटों पे तिरा नाम रहेगा
फ़ना बुलंदशहरी
है वज्ह कोई ख़ास मिरी आँख जो नम है
फ़ना बुलंदशहरी
पड़ गया है ख़ुदा से काम मुझे
फ़ैज़ी
इस लिए दिल बुरा किया ही नहीं
फ़ैज़ी
अच्छा है तू ने इन दिनों देखा नहीं मुझे
फ़ैज़ी
इसी जहाज़ के सहरा में डूब जाने की
फ़ैज़ान हाशमी
बहुत सा काम तो पहले ही कर लिया मैं ने
फ़ैज़ान हाशमी
दिन उतरते ही नई शाम पहन लेता हूँ
फ़ैज़ ख़लीलाबादी
सुरूद
फ़ैज़ अहमद फ़ैज़
मदह
फ़ैज़ अहमद फ़ैज़
कुछ इश्क़ किया कुछ काम किया
फ़ैज़ अहमद फ़ैज़
ईरानी तलबा के नाम
फ़ैज़ अहमद फ़ैज़
एक रह-गुज़र पर
फ़ैज़ अहमद फ़ैज़
भाई
फ़ैज़ अहमद फ़ैज़
सितम सिखलाएगा रस्म-ए-वफ़ा ऐसे नहीं होता
फ़ैज़ अहमद फ़ैज़
शैख़ साहब से रस्म-ओ-राह न की
फ़ैज़ अहमद फ़ैज़
किसी गुमाँ पे तवक़्क़ो' ज़ियादा रखते हैं
फ़ैज़ अहमद फ़ैज़
किस शहर न शोहरा हुआ नादानी-ए-दिल का
फ़ैज़ अहमद फ़ैज़
चश्म-ए-मयगूँ ज़रा इधर कर दे
फ़ैज़ अहमद फ़ैज़
कभी भुलाया कभी याद कर लिया उस को
फ़ैसल अजमी
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