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Collection: जंगल Hindi Poetry | Best Hindi Shayari & Poems - Page 5 - Darsaal

जंगल Poetry (page 5)

अब यही बेहतर है नक़्श-ए-आब होने दे मुझे

सिद्दीक़ मुजीबी

दुख

सिद्दीक़ कलीम

ले उड़े ख़ाक भी सहरा के परस्तार मिरी

सिद्दीक़ अफ़ग़ानी

हर चंद कि प्यारा था मैं सूरज की नज़र का

सिद्दीक़ अफ़ग़ानी

टूट कर अंदर से बिखरे और हम जल-थल हुए

सिद्दीक़ा शबनम

हूँ किस मक़ाम पे दिल में तिरे ख़बर न लगे

सिद्दीक़ शाहिद

मैं किसी की रात का तन्हा चराग़

शुमाइला बहज़ाद

इतना नूर कहाँ से लाऊँ तारीकी के इस जंगल में

शोएब निज़ाम

किसी नादीदा शय की चाह में अक्सर बदलते हैं

शोएब निज़ाम

जो तसव्वुर में है उस को कोई क्या रौशन करे

शोएब निज़ाम

दुनिया से दुनिया में रह कर कैसे किनारा कर रक्खा है

शोएब निज़ाम

एक ज़र्रा भी न मिल पाएगा मेरा मुझ को

शोएब बिन अज़ीज़

हवा भी गर्म है छाए हैं सुर्ख़ बादल क्यूँ

शिफ़ा कजगावन्वी

वक़्त आफ़ाक़ के जंगल का जवाँ चीता है

शेर अफ़ज़ल जाफ़री

हम ज़िंदगी-शनास थे सब से जुदा रहे

शहपर रसूल

बदलती रुत का नौहा सुन रहा है

शीन काफ़ निज़ाम

मंज़िलों का निशान कब देगा

शीन काफ़ निज़ाम

किसी के साथ अब साया नहीं है

शीन काफ़ निज़ाम

कई शक्लों में ख़ुद को सोचता है

शीन काफ़ निज़ाम

कभी जंगल कभी सहरा कभी दरिया लिख्खा

शीन काफ़ निज़ाम

वो कौन है जिस की वहशत पर सुनते हैं कि जंगल रोता है

शाज़ तमकनत

ख़्वाब नादिम हैं कि ता'बीर दिखाने से गए

शाज़ तमकनत

पहली बार वो ख़त लिक्खा था

शारिक़ कैफ़ी

ख़्वाब ऐसा भी नज़र आया है अक्सर मुझ को

शारिक़ जमाल

दिखाई देंगे जो गुल मेज़ पर क़रीने से

शारिक़ जमाल

मुझे हर शाम इक सुनसान जंगल खींच लेता है

शमीम रविश

मिरे अतराफ़ ये कैसी सदाएँ रक़्स करती हैं

शमीम रविश

तिलिस्म-ए-सफ़र

शमीम क़ासमी

नया आदम

शमीम क़ासमी

परछाइयों की बात न कर रंग-ए-हाल देख

शमीम हनफ़ी

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