जुदा Poetry (page 10)
एक रहने से यहाँ वो मावरा कैसे हुआ
सग़ीर मलाल
ख़ाक में मिलती हैं कैसे बस्तियाँ मालूम हो
सग़ीर मलाल
कैसे जानूँ कि जहाँ ख़्वाब-नुमा होता है
सग़ीर मलाल
एक रहने से यहाँ वो मावरा कैसे हुआ
सग़ीर मलाल
अलग हैं हम कि जुदा अपनी रह-गुज़र में हैं
सग़ीर मलाल
एक वा'दा है किसी का जो वफ़ा होता नहीं
साग़र सिद्दीक़ी
इक अजनबी ख़याल में ख़ुद से जुदा रहा
साग़र मेहदी
तराना-ए-क़ौमी
सफ़ीर काकोरवी
सूने ही रहे हिज्र के सहरा उसे कहना
सफ़दर सलीम सियाल
सहरा में ज़र्रा क़तरा समुंदर में जा मिला
सईदुल ज़फर चुग़ताई
इतना तो हुआ ऐ दिल इक शख़्स के जाने से
सईद राही
मैं दोस्त से न किसी दुश्मनी से डरता हूँ
सईद नक़वी
पहले वो क़ैद-ए-मर्ग से मुझ को रिहा करे
सईद अख़्तर
'बेदिल' का तख़य्युल हूँ न ग़ालिब की नवा हूँ
सादिक़ नसीम
नज़र से दूर हैं दिल से जुदा न हम हैं न तुम
साबिर ज़फ़र
सब सितम याद हैं सारी हमदर्दियाँ याद हैं
साबिर ज़फ़र
नज़र से दूर हैं दिल से जुदा न हम हैं न तुम
साबिर ज़फ़र
जीने का दरस सब से जुदा चाहिए मुझे
साबिर ज़फ़र
दिन को मिस्मार हुए रात को तामीर हुए
साबिर ज़फ़र
अपनी यकजाई में भी ख़ुद से जुदा रहता हूँ
साबिर ज़फ़र
ये कैसी सियासत है मिरे मुल्क पे हावी
साबिर दत्त
हैरान हूँ दो आँखों से क्या देख रहा हूँ
साबिर दत्त
मंज़िल पे पहुँचने का मुझे शौक़ हुआ तेज़
सबा अकबराबादी
वफ़ा का बंदा हूँ उल्फ़त का पासदार हूँ मैं
साइल देहलवी
हम को ख़ुश आया तिरा हम से ख़फ़ा हो जाना
सादुल्लाह शाह
यूँ आज अपने-आप से उलझा हुआ हूँ मैं
रूही कंजाही
इसी लिबास इसी पैरहन में रहना है
रिज़वानूरर्ज़ा रिज़वान
दुनिया से परे जिस्म के इस बाब में आए
रियाज़ लतीफ़
वो कौन है दुनिया में जिसे ग़म नहीं होता
रियाज़ ख़ैराबादी
पैमाने में वो ज़हर नहीं घोल रहे थे
रियाज़ ख़ैराबादी
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