जिगर Poetry (page 9)
स्पैशलिस्ट पेन-किलर दे तो कौन सा?
सरफ़राज़ शाहिद
धर के हाथ अपना जिगर पर मैं वहीं बैठ गया
सरदार गेंडा सिंह मशरिक़ी
वुसअ'त-ए-बहर-ए-इश्क़ क्या कहिए
सरदार गेंडा सिंह मशरिक़ी
तेरी महफ़िल में जितने ऐ सितम-गर जाने वाले हैं
सरदार गेंडा सिंह मशरिक़ी
नासेहा आया नसीहत है सुनाने के लिए
सरदार गेंडा सिंह मशरिक़ी
मिरा ये ज़ख़्म सीने का कहीं भरता है सीने से
सरदार गेंडा सिंह मशरिक़ी
हम सोज़-ए-दिल बयाँ करें तुम से कहाँ तलक
सरस्वती सरन कैफ़
कौन इन लाखों अदाओं में मुझे प्यारी नहीं
साक़िब लखनवी
तिलिस्म-ए-लफ़्ज़-ओ-मआ'नी को तार तार करें
समद अंसारी
चश्म-ए-हैराँ को यूँ ही महव-ए-नज़र छोड़ गए
समद अंसारी
मय-कशी छोड़ दी तौहीन-ए-हुनर कर आया
सलमान अंसारी
थी ये उम्मीद कि वो लौट के घर आएगा
सलमा शाहीन
बहार-ए-गुलिस्ताँ हम को न पहचाने तअज्जुब है
सालिक लखनवी
मुझ ना-तवाँ पे हश्र में वहम-ए-फुग़ाँ ग़लत
सालिक देहलवी
ज़ुल्मत है तो फिर शो'ला-ए-शब-गीर निकालो
सलीम शाहिद
इश्क़ और नंग-ए-आरज़ू से आर
सलीम अहमद
हवा ज़माने की साक़ी बदल तो सकती है
सलाम मछली शहरी
दर्द को गुर्दा तड़पने को जिगर
सख़ी लख़नवी
मुंकिर-ए-बुत है ये जाहिल तो नहीं
सख़ी लख़नवी
दिल ही मेरा फ़क़त है मतलब का
सख़ी लख़नवी
वो माह-वश है ज़मीं पर नज़र झुकाए हुए
सज्जाद बाक़र रिज़वी
शाम-ए-ग़म की सहर नहीं होती
साजिद सिद्दीक़ी लखनवी
कभी जिगर पे कभी दिल पे चोट पड़ती है
सैफ़ुद्दीन सैफ़
तिरी नज़र से ज़माने बदलते रहते हैं
सैफ़ुद्दीन सैफ़
जैसे दरिया में गुहर बोलता है
सैफ़ुद्दीन सैफ़
बे-ख़ुदी ले उड़ी हवास कहीं
सैफ़ुद्दीन सैफ़
वो पर्दा ज़ीनत-ए-दर के सिवा कुछ और नहीं
सैफ़ बिजनोरी
दिल इज़्तिराब में है जिगर इल्तिहाब में
साइब आसमी
तेरी आवाज़
साहिर लुधियानवी
एहसास-ए-कामराँ
साहिर लुधियानवी
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