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Collection: चलो चलें Hindi Poetry | Best Hindi Shayari & Poems - Page 24 - Darsaal

चलो चलें Poetry (page 24)

यक़ीन है कि वो मेरी ज़बाँ समझता है

सलीम शहज़ाद

मौसम का ज़हर दाग़ बने क्यूँ लिबास पर

सलीम शाहिद

जुरअत-ए-इज़हार का उक़्दा यहाँ कैसे खुले

सलीम शाहिद

बे-वज़्अ शब-ओ-रोज़ की तस्वीर दिखा कर

सलीम शाहिद

वहाँ महफ़िल न सजाई जहाँ ख़ल्वत नहीं की

सलीम कौसर

कैसे हंगामा-ए-फ़ुर्सत में मिले हैं तुझ से

सलीम कौसर

सुहाने ख़्वाब आँखों में संजोना चाहता हूँ

सलीम फ़राज़

कुछ नए ख़्वाब हर इक फ़स्ल में पाले गए हैं

सलीम फ़राज़

हर-चंद तिरे ग़म का सहारा भी नहीं है

सलीम फ़राज़

वो लोग भी हैं जो मौजों से डर गए होंगे

सलीम अहमद

वस्ल ओ फ़स्ल की हर मंज़िल में शामिल इक मजबूरी थी

सलीम अहमद

मेरी ग़ज़ल में एक नया सोज़-ए-जाँ भी है

सलीम अहमद

मंज़िल-ए-बे-जहत की ख़ैर सई-ए-सफ़र है राएगाँ

सलीम अहमद

ख़ुद अपनी लौ में था मेहराब-ए-जाँ में जलता था

सलीम अहमद

एक ख़ुश्बू दिल-ओ-जाँ से आई

सलीम अहमद

बज़्म आख़िर हुई शम्ओं' का धुआँ बाक़ी है

सलीम अहमद

बैठे हैं सुनहरी कश्ती में और सामने नीला पानी है

सलीम अहमद

सितम तू करता है लेकिन दुआ भी देता है

सज्जाद सय्यद

मैं हम-नफ़साँ जिस्म हूँ वो जाँ की तरह था

सज्जाद बाक़र रिज़वी

वो तेरी इनायत की सज़ा याद है अब तक

सज्जाद बाक़र रिज़वी

वो माह-वश है ज़मीं पर नज़र झुकाए हुए

सज्जाद बाक़र रिज़वी

उसे मैं तलाश कहाँ करूँ वो उरूज है मैं ज़वाल हूँ

सज्जाद बाक़र रिज़वी

उस सादा-दिल से कुछ मुझे 'बाक़र' गिला न था

सज्जाद बाक़र रिज़वी

मैं हम-नफ़साँ जिस्म हूँ वो जाँ की तरह था

सज्जाद बाक़र रिज़वी

मैं हम-नफ़साँ जिस्म हूँ वो जाँ की तरह था

सज्जाद बाक़र रिज़वी

जहाँ में रह के भी हम कब जहाँ में रहते हैं

सज्जाद बाक़र रिज़वी

हम राज़-ए-गिरफ़्तारी-ए-दिल जान गए हैं

सज्जाद बाक़र रिज़वी

हो दिल-लगी में भी दिल की लगी तो अच्छा है

सज्जाद बाक़र रिज़वी

हज़ार शुक्र कभी तेरा आसरा न गया

सज्जाद बाक़र रिज़वी

है दुकान-ए-शौक़ भरी हुई कोई मेहरबाँ हो तो ले के आ

सज्जाद बाक़र रिज़वी

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