चलो चलें Poetry (page 18)
हर गुल उस बाग़ का नज़रों में दहाँ है गोया
शैख़ ज़हूरूद्दीन हातिम
एक तो तिरी दौलत था ही दिल ये सौदाई
शैख़ ज़हूरूद्दीन हातिम
साक़ी मय-ए-गुल-रंग मिरे लब से मिला देख
शैख़ मीर बख़्श मसरूर
अपने रोज़ ओ शब का आलम कर्बला से कम नहीं
शहज़ाद क़मर
हर एक गाम पे सदियाँ निसार करते हुए
शहज़ाद नय्यर
न पूछ मेरी कहानी कहाँ से निकली है
शहज़ाद अंजुम बुरहानी
मैं अपनी जाँ में उसे जज़्ब किस तरह करता
शहज़ाद अहमद
वो जा चुका है तो क्यूँ बे-क़रार इतने हो
शहज़ाद अहमद
तुझ पे जाँ देने को तय्यार कोई तो होगा
शहज़ाद अहमद
तेरे घर की भी वही दीवार थी दरवाज़ा था
शहज़ाद अहमद
मुंतज़िर दश्त-ए-दिल-ओ-जाँ है कि आहू आए
शहज़ाद अहमद
हिज्र की रात मिरी जाँ पे बनी हो जैसे
शहज़ाद अहमद
चराग़ ख़ुद ही बुझाया बुझा के छोड़ दिया
शहज़ाद अहमद
फ़रेब-दर-फ़रेब
शहरयार
चुपके से इधर आ जाओ
शहरयार
ज़मीं से ता-ब-फ़लक धुँद की ख़ुदाई है
शहरयार
मोम के जिस्मों वाली इस मख़्लूक़ को रुस्वा मत करना
शहरयार
हमारी आँख में नक़्शा ये किस मकान का है
शहरयार
दयार-ए-दिल न रहा बज़्म-ए-दोस्ताँ न रही
शहरयार
ख़ला सा कहीं है
शहराम सर्मदी
नसीब-ए-चश्म में लिक्खा है गर पानी नहीं होना
शहराम सर्मदी
मैं नहीं रोता हूँ अब ये आँख रोती है मुझे
शहराम सर्मदी
इनायत है तिरी बस एक एहसान और इतना कर
शहराम सर्मदी
ब-नाम-ए-इश्क़ इक एहसान सा अभी तक है
शहराम सर्मदी
ताक़-ए-जाँ में तेरे हिज्र के रोग संभाल दिए
शहनाज़ नूर
हुसैन! तोमी कोथाए
शहनाज़ नबी
हुआ सरकश अंधेरा सख़्त-जाँ है
शहनाज़ नबी
मिरी तरह से कहीं ख़ाक छानता होगा
शहनाज़ मुज़म्मिल
याद के शहर मिरी जाँ से गुज़र
शाहिदा तबस्सुम
संग-ज़नों के वास्ते फिर नए रास्तों में है
शाहिदा तबस्सुम
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