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Collection: चलो चलें Hindi Poetry | Best Hindi Shayari & Poems - Page 13 - Darsaal

चलो चलें Poetry (page 13)

शौक़ रातों को है दर पे कि तपाँ हो जाऊँ

सिराजुद्दीन ज़फ़र

मैं ने कहा कि तजज़िया-ए-जिस्म-ओ-जाँ करो

सिराजुद्दीन ज़फ़र

मस्जिद में तुझ भँवों की ऐ क़िबला-ए-दिल-ओ-जाँ

सिराज औरंगाबादी

आई है तिरे इश्क़ की बाज़ी दिल-ओ-जाँ पर

सिराज औरंगाबादी

तुझे कहता हूँ ऐ दिल इश्क़ का इज़हार मत कीजो

सिराज औरंगाबादी

तुझ ज़ुल्फ़ की शिकन है मानिंद-ए-दाम गोया

सिराज औरंगाबादी

सनम ख़ुश तबईयाँ सीखे हो तुम किन किन ज़रीफ़ों सीं

सिराज औरंगाबादी

सनम हज़ार हुआ तो वही सनम का सनम

सिराज औरंगाबादी

क़द तिरा सर्व-ए-रवाँ था मुझे मालूम न था

सिराज औरंगाबादी

मुझ सीं ग़म दस्त-ओ-गरेबाँ न हुआ था सो हुआ

सिराज औरंगाबादी

मुझ पर ऐ महरम-ए-जाँ पर्दा-ए-असरार कूँ खोल

सिराज औरंगाबादी

कभी तुम मोल लेने हम कूँ हँस हँस भाव करते हो

सिराज औरंगाबादी

जलव-ए-जाँ-फ़ज़ा दिखाता रह

सिराज औरंगाबादी

हम हैं मुश्ताक़-ए-जवाब और तुम हो उल्फ़त सीं बईद

सिराज औरंगाबादी

हुआ हूँ इन दिनों माइल किसी का

सिराज औरंगाबादी

है दिल में ख़याल-ए-गुल-ए-रुख़्सार किसी का

सिराज औरंगाबादी

ग़म-ए-आहिस्ता-रौ याँ रफ़्ता रफ़्ता

सिराज औरंगाबादी

ग़म ने बाँधा है मिरे जी पे खला हाए खला

सिराज औरंगाबादी

देखा है जिस ने यार के रुख़्सार की तरफ़

सिराज औरंगाबादी

अमल सें मय-परस्तों के तुझे क्या काम ऐ वाइ'ज़

सिराज औरंगाबादी

ऐ दोस्त तलत्तुफ़ सीं मिरे हाल कूँ आ देख

सिराज औरंगाबादी

ज़िंदगी तुझ से प्यार क्या करते

सिरज़ अालम ज़ख़मी

कोई महबूब सितमगर भी तो हो सकता है

सिरज़ अालम ज़ख़मी

समुंदरों में सराब और ख़ुश्कियों में गिर्दाब देखता है

सिराज अजमली

शरीक-ए-ग़म कोई कब मो'तबर निकलता है

सिद्दीक़ मुजीबी

न कोई नक़्श न पैकर सराब चारों तरफ़

सिद्दीक़ मुजीबी

मिरे चेहरे से ग़म आँखों से हैरानी न जाएगी

सिद्दीक़ मुजीबी

मौज-ए-ख़याल-ए-यार ग़म-ए-आसार आई है

सिद्दीक़ मुजीबी

एक बे-मंज़र उदासी चार-सू आँखों में है

सिद्दीक़ मुजीबी

बस एक बूँद थी औराक़-ए-जाँ में फैल गई

सिद्दीक़ मुजीबी

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