जाम Poetry (page 27)
एक जिला-वतन की वापसी
असरार-उल-हक़ मजाज़
आज भी
असरार-उल-हक़ मजाज़
तस्कीन-ए-दिल-ए-महज़ूँ न हुई वो सई-ए-करम फ़रमा भी गए
असरार-उल-हक़ मजाज़
साक़ी-ए-गुलफ़ाम बा-सद एहतिमाम आ ही गया
असरार-उल-हक़ मजाज़
निगाह-ए-लुत्फ़ मत उठ ख़ूगर-ए-आलाम रहने दे
असरार-उल-हक़ मजाज़
दामन-ए-दिल पे नहीं बारिश-ए-इल्हाम अभी
असरार-उल-हक़ मजाज़
आसमाँ तक जो नाला पहुँचा है
असरार-उल-हक़ मजाज़
ऐसा ये दर्द है कि भुलाया न जाएगा
असरा रिज़वी
न मलाल-ए-हिज्र न मुंतज़िर हैं हवा-ए-शाम-ए-विसाल के
असलम महमूद
क़ासिद तो लिए जाता है पैग़ाम हमारा
आसिफ़ुद्दौला
नफ़रतें दिल से मिटाओ तो कोई बात बने
अशोक साहनी
रघुपति राघव राजा राम
अशोक लाल
यूँ न मायूस हो ऐ शोरिश-ए-नाकाम अभी
असग़र गोंडवी
वो नग़्मा बुलबुल-ए-रंगीं-नवा इक बार हो जाए
असग़र गोंडवी
रक़्स-ए-मस्ती देखते जोश-ए-तमन्ना देखते
असग़र गोंडवी
मौजों का अक्स है ख़त-ए-जाम-ए-शराब में
असग़र गोंडवी
जान-ए-नशात हुस्न की दुनिया कहें जिसे
असग़र गोंडवी
हुस्न को वुसअतें जो दीं इश्क़ को हौसला दिया
असग़र गोंडवी
लुत्फ़ गुनाह में मिला और न मज़ा सवाब में
असर सहबाई
वो उन का हिजाब और नज़ाकत के नज़ारे
असर रामपुरी
तमाशा है कि सब आज़ाद क़ौमें
असद मुल्तानी
न बज़्म अपनी न अपना साक़ी न शीशा अपना न जाम अपना
असद भोपाली
'आरज़ू' जाम लो झिजक कैसी
आरज़ू लखनवी
नज़र उस चश्म पे है जाम लिए बैठा हूँ
आरज़ू लखनवी
ऐ मिरे ज़ख़्म-ए-दिल-नवाज़ ग़म को ख़ुशी बनाए जा
आरज़ू लखनवी
उफ़ुक़ के ख़ूनीं धुँदलकों का सुब्ह नाम नहीं
अर्शी भोपाली
न पयाम चाहते हैं न कलाम चाहते हैं
अरशद सिद्दीक़ी
जीना है एक शग़्ल सो करते रहे हैं हम
अरशद काकवी
कुछ दर्जा और गर्मी-ए-बाज़ार हो बुलंद
अरशद जमाल हश्मी
जो साक़िया तू ने पी के हम को दिया है जाम-ए-शराब आधा
अरशद अली ख़ान क़लक़
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